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________________ १९२ पञ्चाशकप्रकरणम् जातश्च अजातश्च द्विविधः कल्पस्तु भवति एकैकोऽपि च द्विविधः समाप्तकल्पश्च गीतार्थो जातकल्पः अगीतः खलु पञ्चकं समाप्तकल्पः तदूनको भवति ऋतुबद्धे वर्षासु तु सप्त समाप्तः तदूनक इतरः । असमाप्ताजातानामोघेन न प्रतिषेधात् इतः एतेषामतोऽपीदं विशेषविषयं ज्ञातव्यम् ।। ३० ।। जात और अजात के भेद से कल्प दो प्रकार का होता है। ये दोनों पुनः समाप्त और असमाप्त के भेद से दो-दो प्रकार के होते हैं ।। २७ ।। ज्ञातव्य: । असमाप्तः ।। २७ ।। भवेदजातस्तु । असमाप्तः ।। २८ ।। Jain Education International [ एकादश किञ्चिदाभाव्यम् ।। २९ ।। सामान्यनिषेधोऽवगन्तव्यः । अगीतार्थ या गीतार्थ की निश्रावाले साधु का विहार जातकल्प है। अगीतार्थ या गीतार्थ की निश्रारहित साधु का विहार अजातकल्प है। चातुर्मास के अतिरिक्त अन्य समय में पाँच साधुओं का विहार समाप्तकल्प है। उससे कम (चार इत्यादि) साधुओं का विहार असमाप्तकल्प है। चातुर्मास में सात साधु रहें तो समाप्तकल्प और उससे कम (छः इत्यादि) रहें तो असमाप्तकल्प है। वर्षा ऋतु में सात साधुओं के साथ रहने का विधान इसलिए है कि उनमें से यदि कोई बीमार पड़े तो उसकी पर्याप्त सहायता हो सके ।। २८-२९ ।। जो साधु असमाप्तकल्प वाले और अजातकल्प वाले हैं अर्थात् अपूर्ण संख्या वाले और अगीतार्थ हैं, उनका सामान्यतया कोई भी आभाव्य (अधिकार) नहीं होता है । अर्थात् ऐसे साधु जिस क्षेत्र में विहार करते हैं, वह क्षेत्र और उस क्षेत्र से प्राप्त होने वाले शिष्य एवं आहारादि पर उनका अधिकार नहीं होता है। इसलिए ऐसे साधुओं के विहार का निषेध भी हो जाता है। इसी से यह भी सिद्ध हो जाता है कि एकाकी विहार सभी साधुओं के लिए नहीं, अपितु विशिष्ट साधुओं के लिए है ।। ३० ।। एकाकी विहार के दोष एगागियस्स दोसा इत्थीसाणे तहेव भिक्खविसोहिमहव्वय तम्हा सवितिज्जए एकाकिनो दोषाः स्त्रीशुनि तथैव भिक्षाविशोधिमहाव्रते तस्मात् सद्वितीयस्य एकाकी विहार करने वाले को अनेक दोष लगते हैं, यथा : विधवा, परित्यक्ता गमनम् ।। ३१ ।। १. स्त्री सम्बन्धी दोष पडिणीए । प्रत्यनीके | For Private & Personal Use Only गमणं ।। ३१ ।। आदि स्त्रियाँ एकाकी साधु www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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