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________________ १९० पञ्चाशकप्रकरणम् [एकादश क्षमा आदि गुणों के अभाव से गुरुकुलवास का त्याग अवश्य ही होता है (कभी-कभी पुष्ट कारणों से भी गुरुकुल का त्याग होता है, किन्तु वह त्याग नहीं कहा जा सकता है)। गुरुकुलवास के त्याग से ब्रह्मचर्य की गुप्ति नहीं रहती। साधुओं की सहायता ब्रह्मचर्यगुप्ति कहलाती है। ब्रह्मचर्यगुप्ति के अभाव में ब्रह्मचर्य नहीं रहता है। इसी प्रकार दूसरे तप-संयम आदि भी गुप्ति के अभाव में नहीं रहते हैं। क्योंकि साधुओं की असहायता ही सभी व्रतों के भंग का कारण है ।। २१ ।। गुरुकुलवास से कर्मनिर्जरारूप महान् लाभ गुरुवेयावच्चेणं सदणुट्ठाणसहकारिभावाओ । विउलं फलमिब्भस्स व विसोवगेणावि ववहारे ।। २२ ।। गुरुवैयावृत्येन सदनुष्ठानसहकारिभावात् । विपुलं फलमिभ्यस्य इव विंशोपकेनापि व्यवहारे ।। २२ ।। गुरुकुल में वास करने वाले को गुरु की सेवा करने से सदनुष्ठानों (आचार्य द्वारा प्रदत्त वाचना एवं धर्मोपदेश आदि) में सहभागी बनता है, जिससे कर्मनिर्जरा रूप महान् लाभ होता है। जिस प्रकार कोई लखपति वणिकपत्र अपने धन के बीसवें भाग से भी व्यापार करे तो भी उसे बहुत लाभ होता है, उसी प्रकार महान् आचार्य की सेवा मात्र से बहुत लाभ होता है ।। २२ ।। गुरुकुल के त्याग से अनर्थ की प्राप्ति इहरा सदंतराया दोसोऽविहिणा य विविहजोगेसु । हंदि पयर्ट्सतस्सा तदण्णदिक्खावसाणेसु ।। २३ ।। इतरथा सदाऽन्तरायाद् दोषोऽविधिना च विविधयोगेषु । हंदि प्रवर्तमानस्य तदन्यदीक्षावसानेषु ।। २३ ।। गुरुकुलवास का त्याग करने में वैयावृत्य, तप, ज्ञान आदि गुणों का व्याघात होने से दोष लगता है और गुरु की उपासना नहीं करने से संविनों (संसार से भयभीतों) को सामाचारी में दक्षता प्राप्त नहीं होती है। इसलिए वह गुरुकुलवासत्यागी सूत्रार्थग्रहण, प्रतिलेखन आदि से लेकर दूसरों को दीक्षा देने तक विविध अनुष्ठानों में विधिरहित प्रवृत्ति करता है, जिससे उसे दोष लगता है ।। २३ ।। गुणहीन गुरु का त्यागकर सच्चे गुरु की शरण का सुझाव गुरुगुणरहिओ उ गुरू न गुरू विहिचायमो उ तस्सिट्ठो । अण्णत्थ संकमेणं ण उ एगागित्तणेणंति ।। २४ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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