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________________ एकादश ] साधुधर्मविधि पञ्चाशक ज्ञान के अनुरूप दर्शन होता है, अर्थात् ऐसे साधुओं का गुरु के प्रति समर्पण भाव ही उनका ज्ञान और दर्शन है ऐसा केवलियों ने कहा है, क्योंकि ज्ञान का फल गुरु के प्रति समर्पण से मिलता है। - मासतुस साधुओं का उदाहरण इस प्रकार है एक आचार्य थे जो वाचना देते-देते ऊबकर अपने अशिक्षित साधु भ्राता को धन्यवाद देने लगे कि मेरा भाई परतन्त्र नहीं है, वह वाचना देने से मुक्त है। वे अपने आपको वाचना देने की वजह से परतन्त्र समझने लगे थे। अतः मरणोपरान्त अशुभ विचारणा के कारण ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से श्रुतज्ञान पर श्रद्धा होते हुए भी उसका अध्ययन नहीं कर सके। गुरुजी ने उनको 'मा रुस मा तुस' याने 'राग द्वेष मत करो' इस प्रकार संक्षेप में श्रुत का अर्थ कह दिया, लेकिन वे 'मा रुस मा तुस' को भी ठीक से नहीं कह पाते थे। वे मास- तुस कहते थे, फिर भी गुरुभक्ति के कारण कालान्तर में उनको केवलज्ञान प्राप्त हुआ ।। ७ ।। है ? साधु धर्म का स्वरूप धम्मो पुण एयसिह सम्माणुट्ठाणपालणारूवो । विहिपडिसेहजुयं तं आणासारं ― व्वं ॥ ८ ॥ धर्मः पुन एतस्येह सम्यगनुष्ठानपालनारूपः । विधिप्रतिषेधयुतं तदाज्ञासारं ज्ञातव्यम् ।। ८ ।। प्रतिलेखन आदि शुभ अनुष्ठानों का पालन करना साधु का धर्म है। यह अनुष्ठान 'ध्यान करना चाहिए', 'हिंसा नहीं करनी चाहिए' इस प्रकार विधि और प्रतिषेधपूर्वक आगमानुसार होना चाहिए, यही जिनाज्ञा का सार है ॥ ८ ॥ Jain Education International १८५ अगीतार्थ भी शुभ अनुष्ठान का पालन कर सकता है अग्गीयस्स इमं कह ? गुरुकुलवासाउ, कह तओ गीओ ? | गीयाणाकरणाओ, कहमेयं ? णाणतो चेव ॥ ९ ॥ अगीतस्य इदं कथम् ? गुरुकुलवासात् कथं गीताज्ञाकरणात्, तको गीतः । ज्ञानतश्चैव ।। ९ ।। कथमेतत् ? प्रश्न : जिसने आगम का अध्ययन नहीं किया है वह शुभानुष्ठान का पालन कैसे कर सकता है ? ― For Private & Personal Use Only उत्तर : गुरुकुलवास से शुभानुष्ठान का पालन कर सकता है। प्रश्न : अगीतार्थ गुरुकुलवास से शुभानुष्ठान का पालन कैसे कर सकता www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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