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पञ्चाशकप्रकरणम्
[ दशम
करना कठिन है। इसलिए दीक्षार्थी को प्रतिमा का अभ्यास करना चाहिए ।। ४९ ।।
प्रतिमापूर्वक दीक्षा की योग्यता का अन्य दर्शनों से समर्थन तंतंतरेसुवि इमो आसमभेओ पसिद्धओ चेव ।
इच्छमाणेहिं ।। ५० ।।
ता इय इह जइयव्वं भवविरहं तन्त्रान्तरेष्वपि अयमाश्रमभेदः प्रसिद्धकश्चैव । तदितीह भवविरहमिच्छद्भिः ।। ५० ।।
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यतितव्यं
दूसरे दर्शनों में भी ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चार आश्रमों की अलग-अलग भूमिकाएँ प्रसिद्ध ही हैं अर्थात् सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य का पालन फिर गृहस्थ, वानप्रस्थ और फिर संन्यास आश्रम का पालन यह क्रम प्रसिद्ध है। इसलिए संसार सागर से मुक्ति पाने की इच्छा वाले लोगों को प्रतिमापूर्वक दीक्षा ग्रहण करने में प्रयत्न करना चाहिए ।। ५० ।।
॥ इति उपासकप्रतिमाविधिर्नाम दशमं पञ्चाशकम् ॥
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