SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ पश्चाशकप्रकरणम् - [दशम जतिपज्जुवासणपरो सुहुमपयत्थेसु णिच्चतल्लिच्छो । पुव्वोदियगुणजुत्तो दस मासा कालमासे(णे)णं ।। ३४ ।। उद्दिष्टकृतं भक्तमपि वर्जयति किमुत शेषमारम्भम् । सो भवति तु क्षुरमुण्ड: शिखां वा धारयति कोऽपि ।। ३२ ।। यन्निहितमर्थजातं पृष्टो निजकैः केवलं सः तत्र । . यदि जानाति तदा साधयति अथ नैव तदा ब्रूते नैव जाने ।। ३३ ।। यतिपर्युपासनपरः सूक्ष्मपदार्थेषु नित्यतल्लिप्सः । पूर्वोदितगुणयुक्तो दशमासान् कालमानेन ।। ३४ ।। दसवीं प्रतिमा में श्रावक अपने लिए बने हुए भोजन का भी त्याग करता है, फिर दूसरे आरम्भ की तो बात ही क्या है ? वह अपना सिर मुड़वा लेता है। उनमें से कोई चोटी (शिखा) भी रखता है ।। ३२ ।। भूमि आदि में रखे गये धनादि के विषय में पुत्रादि के पूछने पर कि वह कहाँ रखा है ? यदि वह जानता है, तो बतला देता है, यदि नहीं जानता है तो कह देता है कि वह नहीं जानता है अर्थात् पूछने पर वह धन सम्बन्धी सूचना तो दे देता है, किन्तु अपनी ओर से स्वयं पहल नहीं करता है ।। ३३ ।। दसवी प्रतिमाधारी श्रावक साधुसेवा में तत्पर और सर्वज्ञभाषित जीवादि सूक्ष्म पदार्थों का सतत चिन्तन करता रहता है। वह पहले की नौ प्रतिमाओं का पालन करते हुए दस महीने तक इस प्रतिमा का पालन करता है ।। ३४ ।। ग्यारहवीं श्रमणभूत प्रतिमा का स्वरूप खुरमुंडो लोएण व रयहरणं उग्गहं व घेत्तूण । समणब्भूओ विहरइ धम्मं काएण फासंतो ।। ३५ ।। ममकारेऽवोच्छिणे वच्चति सण्णायपल्लि द₹ जे । तत्थवि जहेव साहू गेण्हति फासुं तु आहारं ॥ ३६ ।। पुव्वाउत्तं कप्पति पच्छाउत्तं तु ण खलु एयस्स । ओदणभिलिंगसूवादि सव्वमाहारजायं तु ।। ३७ ।। क्षुरमुण्डो लोचेन वा रजोहरणमवग्रहं वा गृहीत्वा । श्रमणभूतो विहरति धर्म कायेन स्पृशन् ॥ ३५ ॥ ममकारेऽव्यवच्छिन्ने व्रजति संज्ञातपल्लिं द्रष्टुं यः । तत्रापि यथैव साधुः गृह्णाति प्रासुकं तु आहारम् ।। ३६ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy