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________________ १६८ पञ्चाशकप्रकरणम् - दशम ___ सामायिक में गुण-दोष की स्थिति मणदुप्पणिहाणादि ण होति एयम्मि भावओ संते । सतिभावावट्ठियकारिया य सामण्णबीयंति ।। १३ ।। मनोदुष्प्रणिधानादीनि न भवन्ति एतस्मिन् भावतः सति । स्मृतिभावावस्थितकारिता च श्रामण्यबीजमिति ।। १३ ।। सामायिक के भाव होने पर मनोदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान और कायदुष्प्रणिधान नहीं होते हैं, अपितु समत्वभाव में सजगता और अवस्थिति होती है, क्योंकि सामायिक साधुत्व (मुनित्व) का बीज है ।। १३ ॥ पोषधप्रतिमा का स्वरूप पोसेइ कुसलधम्मे जं ताऽऽहारादिचागणुट्ठाणं । इह पोसहोत्ति भण्णति विहिणा जिणभासिएणेव ॥ १४ ॥ पोषयति कुशलधर्मान् यत् तदाहारादित्यागानुष्ठानम् । इह पोषध इति भण्यते विधिना जिनभाषितेनैव ।। १४ ॥ जिससे धर्म का पोषण होता है, ऐसी जिनभाषित विधि से आहार, देहसत्कार, अब्रह्मचर्य और लौकिक-व्यापार – इन चार का त्याग करना पोषध कहलाता है ।। १४ ।। पोषध के चार भेद आहारपोसहो खलु सरीरसक्कारपोसहे चेव । बंभव्वावारेसु य एयगया धम्मवुड्डित्ति ।। १५ ।। आहारपोषधः खलु शरीरसत्कारपोषधश्चैव । ब्रह्मव्यापारयोश्च एतद्गता धर्मवृद्धिरिति ।। १५ ।। त्याग की दृष्टि से पोषध चार प्रकार का होता है - आहार-त्यागपोषध, शरीरसत्कार-त्यागपोषध, ब्रह्मचर्यपोषध और व्यापार-त्यागपोषध। आहारादि के त्याग से धर्म की वृद्धि होती है ।। १५ ।। पोषध में त्याज्य पाँच अतिचार अप्पडिदुप्पडिलेहियसेज्जासंथारयाइ वज्जेति । सम्मं च अणणुपालणमाहारादीसु एयम्मि ।। १६ ।। अप्रतिदुष्प्रतिलेखित - शय्यासंस्तारकादि वर्जयति । सम्यक् च अननुपालनमाहारादिषु एतस्मिन् ॥ १६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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