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उपासकप्रतिमाविधि पञ्चाशक
नवम प्रकरण में यात्रा महोत्सव की विधि रूप द्रव्यस्तव का विस्तृत विवेचन किया गया है। अब यहाँ भावस्तव का विवेचन किया जा रहा है। यत: श्रावक-धर्म का अधिकार है, अत: सर्वप्रथम श्रावक के योग्य भावस्तव के अन्तर्गत ग्यारह प्रतिमाओं का विवेचन करने के लिए ग्रन्थकार मङ्गलाचरण कर रहे हैं -
मङ्गलाचरण नमिऊण महावीरं भव्वहियट्ठाएँ लेसओ किंपि । वोच्छं समणोवासगपडिमाणं सुत्तमग्गेणं ॥ १ ॥ नत्वा महावीरं भव्यहितार्थाय लेशतः किमपि । वक्ष्ये श्रमणोपासकप्रतिमानां सूत्रमार्गेण ।। १ ॥
भगवान् महावीर को नमस्कार करके मैं भव्यजीवों के हितार्थ श्रावक के अभिग्रह विशेषरूप प्रतिमा के सम्बन्ध में संक्षेप में (दशाश्रुतस्कन्ध) आगम के अनुसार कुछ कहूँगा ।। १ ।।
श्रावक की प्रतिमाओं की संख्या समणोवासगपडिमा एक्कारस जिणवरेहिं पण्णत्ता । दंसणपडिमादीया सुयकेवलिणा जतो भणियं ॥ २ ॥ श्रमणोपासकप्रतिमा एकादश जिनवरैः प्रज्ञप्ताः । दर्शनप्रतिमादिकाः श्रुतकेवलिना यतो भणितम् ।। २ ।।
भगवान् जिनेन्द्रदेव ने श्रावक की दर्शनप्रतिमा आदि ग्यारह प्रतिमाएँ कही हैं, जिससे श्रुतकेवली भद्रबाहु ने भी प्रतिमाएँ कही हैं। (जिनेन्द्रदेव ने जो कहा है, वही श्रुतकेवली कहेंगे। यतः श्रुतकेवली कह रहे हैं, अत: यह सिद्ध है कि जिनेन्द्रदेव ने ऐसा कहा है) ॥ २ ॥
श्रुतकेवली के द्वारा कही गयी प्रतिमाओं के नाम दंसण-वय-सामाइय-पोसह-पडिमा-अबंभ- सच्चित्ते । आरंभ - पेस - उद्दिट्ठवज्जए समणभूए य ॥ ३ ॥
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