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नवम]]
यात्राविधि पञ्चाशक
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सर्वसाधारण जिनाज्ञा का स्वरूप इय अण्णत्थऽवि सम्मं णाउं गुरुलाघवं विसेसेण । इढे पयट्टियव्वं एसा खलु भगवतो आणा ।। ४९ ।। इति अन्यत्रापि सम्यग् ज्ञात्वा गुरुलाघवं विशेषेण । इष्टे प्रवर्तितव्यम् एषा खलु भगवत आज्ञा ।। ४९ ।।
महोत्सव के अतिरिक्त अन्य अनुष्ठानों में भी गुरुता-लघुता को भलीभाँति जानकर इष्ट अनुष्ठान में प्रवृत्ति होनी चाहिए - यही भगवान् का आदेश है ।। ४९ ।।
उपसंहार जत्ताविहाणमेयं णाऊणं गुरुमुहाउ धीरेहिं । एवं चिय कायव्वं अविरहियं भत्तिमंतेहिं ।। ५० ॥ यात्राविधानमेतद् ज्ञात्वा गुरुमुखाद् धीरैः । एवमेव कर्तव्यम् अविरहितं भक्तिमद्भिः ।। ५० ॥
श्रद्धालु एवं सज्जन मनुष्यों द्वारा गुरुमुख से इस जिनमहोत्सव विधि को जानकर उसी प्रकार हमेशा करना चाहिए अर्थात् जिनयात्राओं का आयोजन कर॥ चाहिए ।। ५० ।।
॥ इति यात्राविधिर्नाम नवमं पञ्चाशकम् ॥
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