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________________ नवम] यात्राविधि पञ्चाशक १५९ संस्थापक हैं, इसलिए उनके कल्याणक दिनों का वर्णन किया गया। जिस प्रकार वर्तमान शासन में भगवान महावीर के कल्याणक दिनों की आराधना की जाती है, उसी प्रकार शेष ऋषभदेव आदि तेईस तीर्थङ्करों के कल्याणक दिन भी उनके अपने अपने शासनकाल में जानना चाहिए। अर्थात् जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के ऋषभदेव आदि चौबीस जिनों के जो कल्याणक दिन हैं, वे ही कल्याणक दिन बाँकी के चार भरतक्षेत्र और चार ऐरावत क्षेत्रों के चौबीस जिनों के हैं। जैसे महावीर स्वामी के जो कल्याणक दिन हैं, वे ही दिन दूसरे चार भरत और पाँच ऐरावत क्षेत्रों में चौबीसवें तीर्थङ्कर के हैं ।। ३६ ॥ कल्याणकों में महोत्सव करने से लाभ तित्थगरे बहुमाणो अब्भासो तह य जीयकप्पस्स । देविंदादिअणुगिती गंभीरपरूवणा लोए ॥ ३७ ।। वण्णो य पवयणस्सा इयजत्ताए जिणाण णियमेणं । मग्गाणुसारिभावो जायइ एत्तो च्चिय विसुद्धो ॥ ३८ ।। तीर्थङ्करे बहुमानो अभ्यासः तथा च जीतकल्पस्य । देवेन्द्राद्यनुकृतिर्गम्भीरप्ररूपणा लोके ।। ३७ ।। वर्णश्च प्रवचनस्य इति यात्रया जिनानां नियमेन । मार्गानुसारिभावो जायते इत एव विशुद्धः ।। ३८ ॥ कल्याणक के दिनों में जिनयात्रा (जिन-महोत्सव) करने से इस प्रकार लाभ हैं - (१) ये वे दिन होते हैं जब भगवान् का जन्म इत्यादि हुआ था - इस भावना से तीर्थङ्कर का सम्मान होता है। (२) पूर्वपुरुषों के द्वारा आचरित परम्परा (जीतकल्प) का अभ्यास होता है। (३) देव, इन्द्र आदि द्वारा निर्वाहित परम्परा का अनुकरण होता है। (४) यह जिन-महोत्सव साधारण नहीं अपितु गम्भीर-सहेतुक है -- ऐसी लोक में प्रसिद्धि है। (५) इससे लोक में जिनशासन की ख्याति होती है और (६) जिनयात्रा से ही विशुद्ध मार्गानुसारी भाव (मोक्षमार्ग के अनुकूल अध्यवसाय ) होता है ।। ३७-३८ ॥ विशुद्ध मार्गानुसारीभाव की महत्ता तत्तो सयलसमीहियसिद्धी णियमेण अविकलं जं सो । कारणमिमी' भणिओ जिणेहिं जियरागदोसेहिं ।। ३९ ॥ ततः सकलसमीहितसिद्धिः नियमेन अविकलं यत्सः । कारणमस्या भणितो जिनैः जितरागद्वेषैः ।। ३९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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