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________________ १५८ पञ्चाशकप्रकरणम् [ नवम इति ते दिनाः प्रशस्ताः तस्मात् शेषैरपि तेषु कर्तव्यम् । जिनयात्रादि सहर्ष ते च इमे वर्द्धमानस्य ।। ३३ ।। इस प्रकार वे कल्याणक दिन उत्तम होते हैं, क्योंकि उनसे जीवों का कल्याण होता है अर्थात् उनकी आराधना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए देवताओं के अतिरिक्त मनुष्यों द्वारा भी उन कल्याणक के दिनों में हर्षपूर्वक जिनयात्रादि करनी चाहिए। भगवान् महावीर वर्तमान शासन के अधिपति हैं, इसलिए उनके पाँच कल्याणक दिनों का विवरण यहाँ दिया जा रहा है ।। ३३ ।। भगवान महावीर के पाँच कल्याणक दिन आसाढसुद्धछट्ठी चेत्ते तह सुद्धतेरसी चेव । मग्गसिरकिण्हदसमी वइसाहे सुद्धदसमी य ।। ३४ ।। कत्तियकिण्हे चरिमा गब्भाइदिणा जहक्कम एते । हत्थुत्तरजोएणं चउरो तह सातिणा चरमो ॥ ३५ ।। आषाढशुद्धषष्ठी चैत्रे तथा शुद्धत्रयोदश्येव । मार्गशीर्षकृष्णदशमी वैशाखे शुद्धदशमी च ।। ३४ ।। कार्तिककृष्णे चरमा गर्भादि दिनानि यथाक्रमं एतानि । हस्तोत्तरयोगेन चत्वारि तथा स्वातिना चरमः ।। ३५ ।। । भगवान् महावीर के पाँच कल्याणक क्रमश: इस प्रकार हैं - १. आषाढ़ शुक्ला षष्ठी को गर्भाधान, २. चैत्रमास की शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को जन्म, ३. अगहन मास के कृष्णपक्ष की दशमी के दिन निष्क्रमण, ४. वैशाखमास की शुक्लपक्ष की दशमी को केवलज्ञान की प्राप्ति और ५. कार्तिकमास की कृष्णपक्ष की अमावस्या को निर्वाण। इनमें से गर्भ, जन्म, निष्क्रमण और केवलज्ञान - इन चार कल्याणकों में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग था और अन्तिम निर्वाण कल्याणक के समय में स्वाति नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग था ।। ३४-३५ ।। महावीर स्वामी के कल्याणक कहने के हेतु अहिगयतित्थविहाया भगवंति णिदंसिया इमे तस्स । सेसाणवि एवं चिय णियणियतित्थेसु विण्णेया ।। ३६ ।। अधिकृततीर्थविधाता भगवानिति निदर्शितानीमानि तस्य । शेषाणामपि एवमेव निजनिजतीर्थेषु विज्ञेयानि ।। ३६ ।। भगवान् महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल के भरतक्षेत्र के शासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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