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नवम ]
यात्राविधि पञ्चाशक
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अनुसार वस्त्र, विलेपन, माला आदि विविध द्रव्यों से सर्वोत्तम शरीरशोभा करनी चाहिए ।। ८ ।।
उचित गीतवाद्य द्वार उचियमिह गीयवाइयमुचियाण वयाइएहिं जं रम्मं । जिणगुणविसयं सद्धम्मबुद्धिजणगं अणुवहासं ।। ९ ।। उचितमिह गीतवादितमुचितानां वचनादिकैर्यद्रम्यम् । जिनगुणविषयं सद्धर्मबुद्धिजनकमनुपहासम् ।। ९ ॥
योग्य जीवों के वचन आदि भावों से जो रमणीय हो, जिसमें जिन की वीतरागता आदि गुणों का वर्णन हो, जो सद्धर्म (जैनधर्म) के प्रति आकर्षण पैदा करने वाला हो और जो उपहसनीय न हो - ऐसा गीतवाद्य योग्य माना गया है। जिनयात्रा में ऐसा ही गीतवाद्य होना चाहिए ।। ९ ।। .
स्तुतिस्तोत्र द्वार का विवरण • थुइथोत्ता पुण उचिया गंभीरपयत्थविरइया जे उ। संवेगवुड्डिजणगा समा य पाएण सव्वेसि ।। १० ।। स्तुतिस्तोत्राणि पुनरुचितानि गम्भीरपदार्थविरचितानि यानि तु । संवेगवृद्धिजनकानि समानि च प्रायेण सर्वेषाम् ।। १० ।।
गम्भीर भावों से विरचित, संवेगवर्द्धक और बोले जाने वाले पदों को प्रायः सभी समझ सकें - ऐसे योग्य स्तुति-स्तोत्र जिनयात्रा में बोलना चाहिए ।। १० ।।
प्रेक्षणक द्वार का विवरण पेच्छणगावि णडादी धम्मियणाडयजुआ इहं उचिया । पत्थावो पुण णेओ इमेसिमारंभमादीओ ।। ११ ।। प्रेक्षणकान्यपि नटादीनि धार्मिकनाटकयुतानि इह उचितानि । प्रस्तावः पुनर्जेय
एषामारम्भादिः ।। ११ ॥ जिनयात्रा में जिनजन्मोत्सव, भरतदीक्षा आदि वृत्तान्त वाले धार्मिक नाटक आदि दृश्य भी उचित हैं, क्योंकि वे भव्य श्रोताओं में संवेग उत्पन्न करते हैं। नाटकादि दृश्य महोत्सव के प्रारम्भ, मध्य और अन्त में करने चाहिए ॥ ११ ।।
दान कब करें? आरंभे च्चिय दाणं दीणादीण मणतुट्ठिजणणत्थं । रण्णाऽमाघायकारणमणहं गुरुणा ससत्तीए।। १२ ।।
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