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अष्टम ]
जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि पञ्चाशक
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प्रतिष्ठा के अवसर पर शुद्धभाव से आठ दिनों तक महोत्सव करना चाहिए। इससे प्रतिष्ठित बिम्बपूजा का विच्छेद नहीं होता है - ऐसा कुछ आचार्य कहते हैं। जबकि अन्य आचार्य तीन दिनों तक महोत्सव अवश्य करना चाहिए - ऐसा कहते हैं ।। ४८ ।।
कंकणमोचन तत्तो विसेसपूयापुव्वं विहिणा पडिस्सरोमुयणं । । भूयबलिदीणदाणं एत्थंपि ससत्तिओ किंपि ।। ४९ ॥ ततो विशेषपूजापूर्वं विधिना प्रतिसरोन्मोचनम् । भूतबलिदीनदानमत्रापि स्वशक्तितः किमपि ।। ४९ ।।
महोत्सव पूर्ण होने के पश्चात् पहले की अपेक्षा और अच्छी तरह से पूजा करके कंकणमोचन (प्रतिमाजी को बाँधे गये मंगलसूत्र को खोलने रूप कार्य) करना चाहिए। इस अवसर पर भी आर्थिक स्थिति और भावना के अनुसार प्रेतों को पुष्प, फल, अक्षत और सुगन्धित जल से पकाया गया अन्न आदि चढ़ाने रूप भूतबलि और अनुकम्पारूप दान करना चाहिए ।। ४९ ।।
उपसंहार तत्तो पडिदिणपूयाविहाणओ तह तहेह कायव्वं । विहिताणुट्ठाणं खलु भवविरहफलं जहा होति ।। ५० ।। तत: प्रतिदिनपूजाविधानतस्तथा तथेह कर्तव्यम् ।। विहितानुष्ठानं खलु भवविरहफलं यथा भवति ।। ५० ।।
इसके बाद प्रतिदिन शास्त्रोक्त विधि से चैत्यवंदन, स्नात्र, पूजा आदि उसी प्रकार करनी चाहिए जिस प्रकार करने से संसार-विरह का नाश हो ।। ५० ।।
॥ इति जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधिर्नाम अष्टमं पञ्चाशकम् ॥
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