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________________ १४२ पूजा वन्दनमुत्सर्गः पारणा सिद्धाचलद्वीपसमुद्रमङ्गलानाञ्च पञ्चाशकप्रकरणम् भावस्थैर्यकरणञ्च । पाठस्तु ॥ ३३ ॥ प्रतिष्ठित जिनबिम्ब की पुष्पादि से पूजा करनी चाहिए। फिर चैत्यवन्दन करना चाहिए, फिर उपसर्गों की शान्ति के लिए कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग करने के पश्चात् (अर्थात् पारणा के पश्चात् ) चित्त की स्थिरता करनी चाहिए अर्थात् एकाग्रचित्त होना चाहिए। आशीर्वाद के लिए सिद्धों की पर्वत, द्वीप, समुद्र आदि की उपमा वाली मंगलगाथाएँ बोलनी चाहिए ।। ३३ ।। - आशीर्वाद सम्बन्धी मांगलिक गाथा सिद्धि | जह सिद्धाण पतिट्ठा तिलोगचूडामणिम्मि आचंदसूरियं तह होउ इमा यथा सिद्धानां प्रतिष्ठा त्रिलोकचूडामणौ आचन्द्रसूर्यौ तथा भवतु इयं जिस प्रकार त्रिभुवन चूड़ामणिरूप सिद्धालय में सिद्ध भगवंतों की प्रतिष्ठा है तथा जैसे चन्द्र और सूर्य शाश्वत हैं, उसी प्रकार यह प्रतिष्ठा भी शाश्वत बने ।। ३४ ।। सुप्रतिष्ठेति ।। ३४ ।। एवं अचलादीसुवि मेरुप्पमुहेसु होति एते मंगलसद्दा तम्मि सुहनिबंधणा एवमचलादिष्वपि मेरुप्रमुखेषु भवति वक्तव्यम् । एते मङ्गलशब्दास्तस्मिन् शुभनिबन्धना दृष्टाः ।। ३५ ।। Jain Education International सिद्धिपदे । सुप्पतिट्ठति ॥ ३४ ॥ वत्तव्यं । दिट्ठा ॥ ३५ ॥ जिस प्रकार सिद्धों की उपमा से मंगल गाथा कही गयी, उसी प्रकार मेरु पर्वत, जम्बूद्वीप, लवण समुद्र आदि शाश्वत पदार्थों की उपमा से भी आशीर्वाद की मंगल गाथाएँ बोलनी चाहिए। प्रतिष्ठा के समय ऐसे मंगलवचन कल्याणकारी बनते हैं ऐसा शास्त्रज्ञों के द्वारा कहा गया है ।। ३५ ।। मांगलिक गाथाएँ बोलने से इष्टसिद्धि सोउं मंगलसद्दं सउणंमि जहा उ एत्थंपि तहा संमं विण्णेया श्रुत्वा मङ्गलशब्दं शकुने यथा तु अत्रापि तथा सम्यग् विज्ञेया [ अष्टम इट्ठसिद्धित्ति । बुद्धिमंतेहिं ।। ३६ ।। इष्टसिद्धिरिति । बुद्धिमद्भिः ।। ३६ ।। जिस प्रकार शकुन - शास्त्र के अनुसार विजय आदि मांगलिक शब्द For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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