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अष्टम ]
जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि पञ्चाशक
चित्रबलिचित्रगन्धैः चित्रैर्व्यूहैर्भावैर्विभव
चित्रकुसुमैश् चित्रवासैः ।
अधिवासन के समय चन्दन, कपूर, पुष्प आदि उत्तम द्रव्य, अक्षत वगैरह औषधि, नारियल आदि फल, वस्त्र, सुवर्ण, मोती, रत्न आदि विविध प्रकार के उपहार, कोष्ठपुटपाक अर्थात् इत्र आदि सुगन्धित द्रव्य, विविध पुष्प, दूसरी वस्तुओं को भी सुगन्धित बनाने वाले विविध चूर्ण और भक्तिभाव वाली उत्तम रचनाओं से जिनेन्द्रदेव के वैभव को प्रकट करके जिनबिम्ब की उत्कृष्ट पूजा करनी चाहिए ।। २९-३० ।।
पूजा में इतना आदर करने का कारण
एयमिह मूलमंगल एत्तो च्चिय उत्तरावि सक्कारा । ता एयम्मि पयत्तो काव्वो
एतदिह मूलमङ्गलमित एव उत्तरेऽपि तदेतस्मिन् प्रयत्न: कर्तव्यो
सारेण ॥ ३० ॥
बुद्धिमंहिं ।। ३१ ।।
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सत्कारा: ।
बुद्धिमद्भिः || ३१ ॥
प्रतिष्ठा के समय जिनबिम्ब की उत्कृष्ट पूजा मूलमंगल है। इस मूलमंगल से ही प्रतिष्ठा होने के बाद प्रतिष्ठित जिनबिम्ब का सत्कार उत्तरोत्तर बढ़ता है, क्योंकि मूलमंगल उत्तरोत्तर सत्कारवृद्धि का कारण है। इसलिए बुद्धिमान् पुरुषों को इस मूलमंगल में उद्यम करना चाहिए ॥ ३१ ॥
उत्कृष्ट पूजा के बाद की विधि चितिवंदण थुतिवुड्डी उस्सग्गो साहु सासणसुराए । थयसरण पूय काले ठवणा मंगल्लपुव्वा उ ।। ३२ ।। चैत्यवन्दनं स्तुतिवृद्धिरुत्सर्ग: साधु शासनसुरायाः । स्तवस्मरणं पूजा काले स्थापना मङ्गलपूर्वा तु ।। ३२ ।।
उत्कृष्ट पूजा करने के पश्चात् चैत्यवन्दन करना चाहिए, फिर वर्धमान स्तुति बोलनी चाहिए (जिस स्तुति में उत्तरोत्तर धर्मानुराग बढ़ता जाये वह वर्धमान स्तुति कहलाती है), फिर शासनदेवी की आराधना के लिए एकाग्रचित्त होकर कायोत्सर्ग करना चाहिए, फिर स्तवस्मरण ( कायोत्सर्ग में 'लोगस्स ' / 'चतुर्विंशतिस्तव' का चिन्तन) करना चाहिए, फिर मङ्गलोच्चारणपूर्वक जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा करनी चाहिए ।। ३२ ।।
प्रतिष्ठा के बाद की विधि
पूया वंदणमुस्सग्ग पारणा भावथेज्जकरणं च । सिद्धाचलदीवसमुद्दमंगलाणं च पाढो
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उ ।। ३३ ।।
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