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[ अष्टम
धारण करना आदि शुभकर्म का कारण जानना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना उत्तम पुरुष के प्रति बहुमान को प्रकट करता है ।। २६ ।।
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पञ्चाशकप्रकरणम्
शरीरभूषा पुण्यबन्ध का कारण है
तित्थगरे बहुमाणा आणाआराहणा कुसलजोगा । अणुबंधसुद्धिभावा रागादीणं अभावा य ।। २७ ।।
तीर्थङ्करे बहुमानाद् आज्ञाराधनात् कुशलयोगात् । अनुबन्धशुद्धिभावाद् रागादीनामभावाच्च ।। २७ ।।
प्रतिष्ठा आदि में सुन्दर वस्त्र धारण करने से १. तीर्थङ्कर के प्रति सम्मान होता है, २. भगवान् के उपदेश का पालन होता है, ३. शास्त्रोक्त होने से शुभ प्रवृत्ति होती है, ४. सतत कर्मक्षयोपशम होने से आत्मा निर्मल होती है और ५. आज्ञा पालनार्थ शरीरशोभा करने से रागादि का अभाव होता है। अतः सुन्दर वस्त्र पुण्यबन्ध का कारण बनते हैं ।। २७ ।।
तहेयम्मि |
चूमने से इसी लोक में मिलने वाला फल दिक्खियजिणोमिणणओ दाणाओ सत्तितो वेहव्वं दारिद्दं च होंति ण कयाति दीक्षितजिनावमानतो दानात् शक्तित: वैधव्यं दारिद्र्यं च भवन्ति न कदाचित्
अधिवासित जिनबिम्ब का प्रोखण' करने से और उसके लिए यथाशक्ति दान देने से स्त्रियों को कभी भी वैधव्य ( विधवापन) और दारिद्र्य प्राप्त नहीं
होता है ।। २८ ।।
चित्तबलिचित्तगंधेहिँ चित्तकुसुमेहिँ
भावेहिं
अधिवासन के समय वैभव के ठाठ से उत्कृष्ट पूजा का विधान उक्कोसिया य पूजा पहाणदव्वेहिं एत्थ कायव्वा । ओसहिफलवत्थसुवण्णमुत्तारयणाइएहिं
च ।। २९ ।।
विऊहेहिं
चित्ते हिँ उत्कर्षिका च पूजा प्रधानद्रव्यैरत्र औषधिफलवस्त्रसुवर्णमुक्ता
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नारीणं ॥ २८ ॥
तथैतस्मिन् ।
नारीणाम् ।। २८ ।।
चित्तवासेहिं |
विहवसारेण ॥ ३० ॥ कर्तव्या ।
रत्नादिकैश्च ।। २९ ।।
१. पुंखणग ( प्रोङ्खणक ) चुमाना, विवाह की एक रीति ।
देखिए : प्राकृत - हिन्दी कोश, पृ० ५८५
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