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जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि पञ्चाशक
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बिम्ब के समक्ष मंगलदीप आदि रखना मंगलदीवा य तहा घयगुलपुण्णा सुभिक्खुभक्खा य । जववारयवण्णयसत्थिगादि सव्वं महारंमं ।। २३ ॥ मङ्गलदीपाश्च तथा घृतगुडपूर्णाः शुभेक्षुभक्ष्याणि च ।। यववारकवर्णकस्वस्तिकादि सर्वं महारम्यम् ।। २३ ।।
बिम्ब के समक्ष घी और गुड़ से युक्त मंगलदीप रखना चाहिए तथा अच्छे गन्ने के टुकड़े और मिष्ठान्न आदि रखना चाहिए तथा जौ के अंकुर, चन्दन का स्वस्तिक आदि सभी प्रकार के रमणीय आकार बनाना चाहिए ।। २३ ॥
मंगलपडिसरणाई चित्ताइं रिद्धिविद्धिजुत्ताई । पढमदियहमि चंदणविलेवणं चेव गंधड्ढें ॥ २४ ।। मङ्गलप्रतिसरणानि चित्राणि ऋद्धिवृद्धियुक्तानि । प्रथमदिवसे चन्दनविलेपनमेव गन्धाढ्यम् ॥ २४ ।।
पहले दिन (अधिवासन करने के दिन) ऋद्धि और वृद्धि - इन दो औषधियों से युक्त विचित्र मांगलिक कंगन प्रतिमा के हाथ में बाँधना चाहिए और प्रतिमा पर कस्तूरी, कपूर आदि सुगन्धित पदार्थों के मिश्रण वाले चन्दन का लेप करना चाहिए ।। २४ ॥
चउणारीओमिणणं णियमा अहिगासु णत्थि उ विरोहो । णेवत्थं च इमासिं जं पवरं तं इहं सेयं ।। २५ ॥ चतुर्नार्यवमानं नियमादधिकासु नास्ति तु विरोधः । नेपथ्यं च आसां यत् प्रवरं तदिह श्रेयः ।। २५ ।।
उस प्रतिमा को चार पवित्र नारियाँ प्रोंखन (न्यौछावर) करें। चार से अधिक नारियाँ हो जाये तो भी कोई आपत्ति नहीं है। इस अनुष्ठान में उनकी वस्त्र आदि वेशभूषा उत्तम हो तो अति श्रेयस्कर है ।। २५ ।।
उत्तम वस्त्र क्यों? जं एयवइयरेणं सरीरसक्कारसंगयं चारु । कीरइ तयं असेसं पुण्णणिमित्तं मुणेयव्वं ।। २६ ॥ यदेतद्वयतिकरेण शरीरसत्कारसङ्गतं चारु । क्रियते तर्कमशेषं पुण्यनिमित्तं ज्ञातव्यम् ।। २६ ।। जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के निमित्त शरीरशोभा के लिए सुन्दर वस्त्रों को
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