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________________ अष्टम] जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि पञ्चाशक १३७ प्रतिष्ठाविधि का प्रतिपादन णिप्फण्णस्स य सम्मं तस्स पइट्ठावणे विही एस । सुहजोएण पवेसो आयतणे ठाणठवणा य ॥ १६ ।। निष्पत्रस्य च सम्यक् तस्य प्रतिष्ठापने विधिरेषः । शुभयोगेन प्रवेश आयतने स्थानस्थापना च ।। १६ ।। अच्छी तरह से निर्मित उस प्रतिमा के स्थापन की विधि इस प्रकार है - शुभ मुहूर्त में उसका मन्दिर में प्रवेश कराना चाहिए और उस बिम्ब को उचित स्थान पर स्थापित करना चाहिए ॥ १६ ॥ भूमिशुद्धी तथा सत्कार का प्रतिपादन तेणेव खेत्तसुद्धी हत्थसयादिविसया णिओगेण । कायव्वो सक्कारो य गंधपुप्फादिएहिँ तहिं ।। १७ ।। तेनैव क्षेत्रशुद्धिः हस्तशतादिविषया नियोगेन । कर्तव्यः सत्कारश्च गन्धपुष्पादिकैस्तस्मिन् ।। १७ ।। प्रतिष्ठा के समय उसी शुभ मुहूर्त में जिनमन्दिर के चारों ओर सौ हाथ तक जमीन को अवश्य ही शुद्ध कर लेना चाहिए अर्थात् सौ हाथ की परिधि के अन्दर स्थित हड्डी, माँस अथवा अन्य अपवित्र वस्तु को हटा देना चाहिए और मन्दिर में गन्ध, पुष्प आदि से प्रतिमा का पूजन (सत्कार) करना चाहिए ॥ १७ ॥ प्रतिष्ठा में देवपूजा का विधान दिसिदेवयाण पूया सव्वेसिं तह य लोगपालाणं । ओसरणकमेणऽण्णे सव्वेसिं चेव देवाणं ।। १८ ॥ दिग्देवतानां पूजा सर्वेषां तथा च लोकपालानाम् । अवसरणक्रमेणाऽन्ये सर्वेषां चैव देवानाम् ।। १८ ।। सभी इन्द्रादि देवताओं की पूजा करनी चाहिए और सभी लोकपाल देवों, यथा - सोम, यम, वरुण और कुबेर का पूर्व आदि दिशा में जिस क्रम से वे स्थित हैं, उसी क्रम से उनकी पूजा करनी चाहिए। दूसरे पञ्चाशक में बताये गये समवसरण की रचना के क्रम से सभी देवों की पूजा करनी चाहिए - ऐसा दूसरे विद्वानों का मन्तव्य है ॥ १८ ।।। असंयमी देवों की पूजा क्यों ? इसका समाधान जमहिगयबिंबसामी सव्वेसिं चेव अब्भुदयहेऊ । ता तस्स पइट्ठाए तेसिं पूयादि अविरुद्धं ॥ १९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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