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अष्टम ]
जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि पञ्चाशक
श्रुत्वा ज्ञात्वा गुणान् जिनानां जातायां शुद्धबुद्धौ । कृत्यमिदं मनुजानां जन्मफलं एतावदेवात्र ।। ३ ।
जिन - भगवान् के वीतरागता, तीर्थप्रवर्तन आदि गुणों को गुरु से सुनकर और जानकर, विचार के शुद्ध होने पर जीव की ऐसी बुद्धि होती है कि जिनबिम्ब बनवाना मनुष्य का कर्तव्य है और यही मनुष्य जन्म का फल है ॥ ३ ॥
गुणपरिसो जिणा खलु तेसिं बिंबस्स दंसणंपि
कारावणेण तस्स उ अणुग्गहो
अत्तणो दर्शनमपि
गुणप्रकर्षो जनाः खलु तेषां बिम्बस्य कारणेन तस्य तु अनुग्रहो
आत्मनः
भगवान् जिनेन्द्रदेव अतिशय गुण सम्पन्न होते हैं। उनके बिम्ब का दर्शन भी कल्याणकारी होता है। उनकी प्रतिमा को बनवाने से स्वयं को एवं दूसरों को भी उत्कृष्ट लाभ होता है ॥ ४ ॥
मोक्खपहसामियाणं मोक्खत्थं उज्जएण कुसलेणं ।
तग्गुणबहुमाणादिसु जइयव्वं
मोक्षपथस्वामिकानां मोक्षार्थम् उद्यतेन
तद्गुणबहुमानादिषु
यतितव्यं
सुहं ।
परमो || ४ ||
सुखम् ।
परमः ।। ४ ॥
सव्वजत्तेणं ॥ ५ ॥
कुशलेन ।
सर्वयत्नेन ॥ ५ ॥
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अतएव मोक्ष के लिए उद्यत बुद्धिशाली जीव को मोक्षमार्ग के स्वामी जिनेन्द्रदेव के उन असाधारण गुणों का प्रयत्नपूर्वक बहुमान करना चाहिए अर्थात् मोक्ष - प्राप्ति के लिए जिनेन्द्रदेव के गुणों को महान् समझना चाहिए ।। ५ ।।
तग्गुणबहुमाणाओ तह सुहभावेण बज्झती णियमा । कम्मं सुहाणुबंधं तस्सुदया सव्वसिद्धित्ति ।। ६ ॥ तद्गुणबहुमानात् तथा शुभभावेन बध्यते नियमात् । कर्म शुभानुबन्धं तस्योदयात् सर्वसिद्धिरिति ॥ ६ ॥
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मोक्षमार्ग के अधिकारी जिनेन्द्रदेव के गुणों की प्रशंसा करने से तथा उनके प्रति शुभभाव रखने से शुभ कर्मों का अनुबन्ध अवश्य होता है और उन कर्मों के उदय से सभी अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है । ६ ॥
जिनबिम्ब निर्माण की विधि
इय सुद्धबुद्धिजोगा काले संपूइऊण कत्तारं । विभवोचियमप्पेज्जा मोल्लं अणहस्स सुहभावो ॥ ७ ॥
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