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जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि पञ्चाशक
सातवें पञ्चाशक में जिनमन्दिर निर्माण की विधि कही गयी है। जिनमन्दिर जिनबिम्ब से अधिष्ठित होता है। इसलिए आठवें पञ्चाशक में जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा-विधि कहने हेतु मङ्गलाचरण करते हैं :
मङ्गलाचरण नमिऊण देवदेवं वीरं सम्मं समासओ वोच्छं । जिणबिंबपइट्ठाए विहिमागमलोयणीतीए ।। १ ।। नत्वा देवदेवं वीरं सम्यक् समासतो वक्ष्ये । जिनबिम्बप्रतिष्ठाया विधिमागमलोकनीत्या ।। १ ।।
इन्द्रादि द्वारा पूज्य देवाधिदेव भगवान् महावीर को प्रणाम करके आगम और लोक - इन दोनों नीतियों के अनुसार जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि का सम्यक् एवं संक्षिप्त विवेचन करूँगा।
विशेष : यहाँ लोक शब्द से यह सूचित किया गया है कि कभी जिनमत के अनुकूल लोकनीति का भी अनुसरण करना होता है ।। १ ।।
जिनबिम्ब बनवाने सम्बन्धी विधि का निरूपण जिणबिंबस्स पइट्ठा पायं कारावियस्स जंतेण । तक्कारवणंमि विहिं पढमं चिय वण्णिमो ताव ।। २ ।। जिनबिम्बस्य प्रतिष्ठा प्राय: कारितस्य यत्नेन । तत्कारणे विधिं प्रथममेव वर्णयामस्तावत् ॥ २ ॥
प्राय: दूसरों से बनवाये गये जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा की जाती है। अत: सर्वप्रथम जिनबिम्ब को बनवाने की विधि का वर्णन कर रहा हूँ ॥ २ ।।
जिनबिम्ब निर्माण के प्रति शुद्ध-बुद्धि का स्वरूप सोऊं णाऊण गुणे जिणाण जायाएँ सुद्धबुद्धीए । किच्चमिणं मणुयाणं जम्मफलं एत्तियं चेव एत्थ ।। ३ ।।
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