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सप्तम ]
जिन भवननिर्माणविधि पञ्चाशक
नियमात् ।
आराधकश्च जीवः सप्ताष्टभवैः प्राप्नोति शाश्वतसौख्यं तु
जन्मादिदोषविरहात्
निर्वाणम् ।। ५० ।।
इस प्रकार ज्ञानादि की आराधना करने वाला जीव सात या आठ भवों में जन्म-मरणादि दोषों से रहित शाश्वत सुख वाले मोक्ष को प्राप्त करता है। विशेष : यहाँ सात या आठ भव जघन्य आराधना की अपेक्षा से हैं। उत्कृष्ट आराधना से उसी भव में भी मोक्ष मिल सकता है ।। ५० ।।
॥ इति जिनभवननिर्माणविधिर्नाम सप्तमं पञ्चाशकम् ॥
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