SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनभवननिर्माणविधि पञ्चाशक जं बहुगुणं पयाणं तं णाऊणं तहेव दंसेइ । ते रक्खंतस्स ततो जहोचितं कह भवे वरबोधिलाभकः सः सर्वोत्तमपुण्यसंयुतो एकान्तपरहितरतो विशुद्धयोगो यद् बहुगुणं प्रजानां तद् ज्ञात्वा तथैव दर्शयति । तान् रक्षतः ततो यथोचितं कथं भवेद् दोषः ।। ३७ ।। अप्रतिपाति सम्यग्दर्शन युक्त और सम्यग्ज्ञान से सम्पन्न, महापुण्यवान्, सर्वहितकारी, विशुद्ध मन, वचन और काय वाले तथा महासत्त्व वाले श्री आदिनाथ भगवान् ने लोगों को जिससे अधिक लाभ हो उस ज्ञान को जानकर लोगों को बतलाया और यथोचित (स्वकर्तव्यपालन रूप) शिल्पादि का शिक्षण देकर प्रजा की अनेक अनर्थों से रक्षा की, ऐसे भगवान् को दोष कैसे लगेगा ? || ३६-३७ ।। बालक रक्षण के सिद्धान्त से उक्त विषय का समर्थन तत्थ पहाणो अंसो बहुदोसनिवारणाउ जगगुरुणो । नागादिरक्खणे जह कड्ढणदोसेवि सुहजोगो ।। ३८ ।। कीलंतं । जणी ।। ३९ । सप्तम ] खड्डातडम्म विसमे इट्ठसुयं पेच्छिऊण तप्पच्चवायभीया तदाणणट्ठा गया दिट्ठो य तीऍ णागो तं पति एंतो दुतो उ तो कड्ढितो तगो तह पीडाइवि तत्र प्रधानोंऽशो नागादिरक्षणे यथा गर्तात विषमे इष्टसुतं प्रेक्ष्य तत्प्रत्यपायभीता तदानयनार्थं गता दृष्टश्च तया नागः तं प्रति आयन् द्रुतस्तु ततः कर्षितः तकः तथा पीडायामपि दोसो ? ।। ३७ ।। भगवान् । महासत्त्वः || ३६ | Jain Education International खड्डाए । सुद्धभावाए ॥ ४० ॥ बहुदोषनिवारणाज्जगद्गुरोः । कर्षणदोषेऽपि शुभयोगः ।। ३८ ।। क्रीडन्तम् । जननी ।। ३९ ।। गर्ताया: । शुद्धभावया ।। ४० । भगवान् आदिनाथ के द्वारा किये गये शिल्पादि विधान में यद्यपि थोड़ी हिंसा होती है, फिर भी प्रधान रूप से वह शुभ प्रवृत्ति ही है, क्योंकि उससे अनेक महान् दोषों का निवारण भी होता है। जिस प्रकार सर्पादि से रक्षा करने के लिए माता के द्वारा बालक को खींचना पीड़ायुक्त होने पर भी वहाँ माता का आशय तो शुभ ही माना गया है ॥ ३८ ॥ १. 'तगा' इति पाठान्तरम् । १२७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy