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________________ सप्तम] जिनभवननिर्माणविधि पञ्चाशक १२३ मजदूरी से अधिक मजदूरी देने से वे अत्यन्त सन्तुष्ट हो जाते हैं और सन्तुष्ट होकर पहले से अधिक काम करते हैं ।। २२ ।। मजदूरों को अधिक पैसा देने से परलोक सम्बन्धी फल धम्मपसंसाएँ तहा केइ णिबंधंति बोहिबीयाइं । अण्णे उ लहुयकम्मा एत्तो च्चिय संपबुज्झंति ।। २३ ।। धर्मप्रशंसया तथा केचित् निबध्नन्ति बोधिबीजानि । अन्ये तु लघुकर्माण इत एव सम्प्रबुध्यन्ते ।। २३ ।। अधिक धन देने से जिन-शासन की प्रशंसा होती है। इससे कुछ लोग शासन के प्रति आकर्षित होकर बोधिबीज (सम्यग्दर्शन के कारणों) को प्राप्त करते हैं और दूसरे लघु कर्म वाले कुछ मजदूर आदि प्रतिबोध को प्राप्त करते हैं ।। २३ ।। लोगे य साहुवाओ अतुच्छभावेण सोहणो धम्मो । परिसुत्तमप्पणीतो पभावणा चेव तित्थस्स ।। २४ ।। लोके च साधुवादोऽतुच्छभावेन शोभनो धर्मः । पुरुषोत्तमप्रणीत: प्रभावना चैव तीर्थस्य ॥ २४ ।। जिनभवन निर्माण कराने वाले की उदारता से सभ्य समाज में जैनधर्म श्रेष्ठ है और उत्तम पुरुषों के द्वारा कहा गया है - इस प्रकार जिन-शासन की प्रभावना होती है ।। २४ ॥ ४. स्वाशयवृद्धि द्वार स्वाशयवृद्धि का निमित्त सासयवुड्डीवि इहं भुवणगुरुजिणिंदगुणपरिण्णाए । तब्बिंबठावणत्थं सुद्धपवित्तीएँ णियमेण ।। २५ ।। स्वाशयवृद्धिरपि इह भुवनगुरुजिनेन्द्रगुणपरिज्ञया । तबिम्बस्थापनार्थं शुद्धप्रवृत्तेः नियमेन ।। २५ ।। स्वाशयवृद्धि अर्थात् शुभ परिणाम की वृद्धि। जिनभवन निर्माण में तीनों लोक में सम्मान्य जिनेन्द्रदेव के गुणों के यथार्थ ज्ञान से एवं जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के लिए की गयी प्रवृत्ति से शुभ परिणाम की वृद्धि अवश्य होती है ।। २५ ।। १. 'तब्बिंबट्ठवणत्थं' इति पाठान्तरम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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