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________________ पञ्चाशकप्रकरणम् [ सप्तम नन्दी आदि बारह प्रकार के वाद्ययन्त्र', घण्टे आदि की शुभ ध्वनि, जल से भरे कलश, सुन्दर आकृति वाले पुरुष और मन आदि योगों की शुभ प्रवृत्ति शकुन हैं अर्थात् इष्टकार्य की सिद्धि के सूचक हैं। आक्रन्दन युक्त शब्द आदि अपशकुन हैं ।। १९ ॥ १२२ दल लाने में भी शकुन आदि देखना चाहिए सुद्धस्सवि गहियस्सा पसत्थदियहम्मि सुहमुहुत्तेणं । संकामणम्मिवि पुणो विण्णेया सउणमादीया ।। २० ।। शुद्धस्यापि गृहीतस्य प्रशस्तदिवसे शुभमुहूर्तेन । सङ्क्रामणेऽपि पुनर्विज्ञेयाः शकुनादयः ।। २० ।। शुभ दिन को शुभ मुहूर्त में खरीदे गये दल को जहाँ खरीदा गया हो वहाँ से दूसरी जगह ले जाने में भी शकुन और शुभ दिन इत्यादि का ध्यान रखना चाहिए ।। २० ।। ३. भृतकानतिसन्धान द्वार मजदूरों को शोषित नहीं करना चाहिए कारवणेवि य तस्सिह भितमाणऽतिसंधणं ण अवियाहिगप्पदामं दिट्ठादिट्ठप्फलं कारणेऽपि च तस्येह भृतकानामतिसन्धानं न अप्यधिकप्रदानं कायव्वं । एयं ।। २१ ।। कर्तव्यम् । दृष्टादृष्ट फलम् एतत् ।। २१ ।। जिनमन्दिर निर्माण सम्बन्धी कोई भी कार्य कराते समय मजदूरों का शोषण नहीं करना चाहिए, अपितु अधिक मजदूरी देनी चाहिए। अधिक मजदूरी देने से इहलोक और परलोक सम्बन्धी शुभ फल मिलता है ।। २१ । मजदूरों को अधिक पैसा देने से इहलोक सम्बन्धी फल परितोसं । ते तुच्छगा वराया अहिगेण दढं उविंति तुट्ठा य तत्थ कम्मं तत्तो अहिगं ते तुच्छका वराका अधिकेन दृढमुपयान्ति तुष्टाश्च तत्र कर्म ततोऽधिकं पकुव्वंति ।। २२ ।। परितोषम् । प्रकुर्वन्ति ।। २२ ।। वे बेचारे मजदूर गम्भीर नहीं होते हैं, वे दीन होते हैं। निश्चित की गयी १. भंभा मउंद मद्दल कदंब झल्लरि हुडुक्क कंसाला । वीणा वंसो पडहो संखो पणवो य बारसमो || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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