SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ पञ्चाशकप्रकरणम् इतरथा अनर्थकं तन्न च तदनुच्चारणेन सा भणिता । अभिसंधारणात् सम्पादनमिष्टमेतस्य ॥ ३९ ॥ तद् पूजा, चैत्यवंदन आदि में सूत्र- पाठ का उच्चारण यदि द्रव्यस्तव के लिए न हो तो वह निरर्थक होता है, क्योंकि आगम में सूत्र- पाठ के उच्चारण के बिना वन्दना नहीं कही गयी है, अर्थात् सूत्र - पद के उच्चारण के बिना वन्दना हो ही नहीं सकती है। इसलिए साधु कायोत्सर्गपूर्वक स्तवन- पाठ रूप द्रव्यस्तव करें यही शास्त्रसम्मत है ॥ ३९ ॥ साधु साक्षात् द्रव्यस्तव क्यों नहीं करे सक्खा उ कसिणसंयमदव्वाभावेहिं णो अयं गम्मइ तं तठितीए भावपहाणा हि अयमिष्टः । साक्षात्तु कृत्स्नसंयमद्रव्याभावाभ्यां न गम्यते तन्त्रस्थित्था भावप्रधाना हि मुनय इति ।। ४० ।। सर्वथा प्राणातिपातविरमणरूप सम्पूर्ण अहिंसा महाव्रत के पालन करने -- [ षष्ठ वाले तथा पूर्ण अपरिग्रही साधुओं के लिए साक्षात् द्रव्य-पूजा करना शास्त्रसम्म नहीं है ऐसा शास्त्रनीति से लगता है। साधुओं के लिए स्नानादि शास्त्र निषिद्ध हैं, क्योंकि मुनियों में भाव की प्रधानता होती है। इसलिए मुनियों के लिए भाव से ही पूजा करना उपयुक्त है ॥ ४० ॥ अकृत्स्नप्रवर्तकानां विरताविरतानामेषः संसारप्रकरणे द्रव्यंस्तवे इसका समाधान इट्ठो । मुणउत्ति ।। ४० ।। गृहस्थ साक्षात् पूजा करने का अधिकारी एएहिंतो अण्णे जे धम्महिगारिणो हु तेसिं सक्खं चिय विणणेओ भावंगतया जतो अकसिणपवत्तयाणं विरयाविरयाण एस संसारपयणुकरणे दव्वत्थए एतोभ्योऽन्ये ये धर्माधिकारिणः खलु तेषां साक्षादेव विज्ञेयो भावाङ्गतया यतो भणितम् ।। ४१ ।। तु । Jain Education International तु । भणितं ॥ ४१ ॥ खलु जुत्तो । कूवदितो ।। ४२ ।। खलु युक्तः । कूपदृष्टान्त: ।। ४२ ।। मुनियों से भिन्न जो धर्माधिकारी जीव हैं, उनके लिए साक्षात् द्रव्यस्तव का विधान है, क्योंकि वह द्रव्यस्तव शुभभाव का कारण होता है। इसका आवश्यक नियुक्ति में विवेचन किया गया है ॥ ४१ ॥ एकदेश संयमवाले देशविरति श्रावकों के लिए भव कम करने में यह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy