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षष्ठ
स्तवविधि पञ्चाशक
१०९
ता
साधु के द्रव्यस्तव की पुष्टि जइणोवि हु दव्वत्थयभेदो अणुमोयणेण अत्थित्ति । एयं च एत्थ णेयं इय सुद्धं तंतजुत्तीए ।। २८ ।। यतेरपि खलु द्रव्यस्तवभेद अनुमोदनेन अस्तीति । एतच्च अत्र ज्ञेयं इति शुद्धं तन्त्रयुक्तया ।। २८ ।।
साधु को भी जिनपूजा एवं दर्शन आदि से हुए हर्ष, प्रशंसा रूप अनुमोदन से द्रव्यस्तव होता है। इस अनुमोदन को द्रव्यस्तव प्रकरण में वर्णित शास्त्र-युक्ति से सम्यक् प्रकार से जानना चाहिए ।। २८ ।।
तंतम्मि वंदणाए पूयणसक्कारहेउ उस्सग्गो । जतिणोऽवि हु णिद्दिट्ठो ते पुण दव्वत्थयसरूवे ।। २९ ।। तन्त्रे वन्दनायां पूजनसत्कारहेतुरुत्सर्गः । यतेरपि खलु निर्दिष्टः तौ पुनो द्रव्यस्तवस्वरूपौ ।। २९ ।।
चैत्यवन्दन के 'अरिहंत चेइयाणं' सूत्र में साधु के लिए भी पूजनसत्कार के लिए कायोत्सर्म कहा गया है। वे पूजन और सत्कार द्रव्यस्तव रूप हैं। इसलिए साधु को द्रव्यस्तव भी होता है, इसका अनुमोदन शास्त्रसम्मत है ।। २९ ।।
पूजा और सत्कार का स्वरूप मल्लाइएहिं पूआ सक्कारो पवरवत्थमादीहिं । अण्णे विवज्जओ इह दुहावि दव्वत्थओ एत्थ ॥ ३० ॥ माल्यादिभिः पूजा सत्कारः प्रवरवस्त्रादिभिः । अन्ये विपर्यय इह द्विधाऽपि द्रव्यस्तवोऽत्र ॥ ३० ॥
पुष्पमाला आदि से की जाने वाली पूजा पूजा है और उत्तम वस्त्र आदि से की जाने वाली पूजा सत्कार है। कुछ आचार्यों का मन्तव्य इसके विपरीत है। उनका कहना है कि उत्तम वस्त्र आदि से की गई पूजा पूजा है और पुष्पमाला आदि से की गई पूजा सत्कार है। यहाँ पूजन और सत्कार – दोनों द्रव्यस्तव हैं ।। ३० ॥
साधु के द्रव्यस्तव को पुनः पुष्टि | ओसरणे बलिमादी ण चेह जं भगवयावि पडिसिद्धं । ता एसमणुण्णाओ उचियाणं गम्मती तेण ॥ ३१ ।। अवसरणे बल्यादि न चेह यद् भगवताऽपि प्रतिषिद्धम् । तदेषोऽनुज्ञात . उचितानां गम्यते . तेन ॥ ३१ ॥
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