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________________ स्तवविधि पञ्चाशक चौथे पञ्चाशक जो में पूजाविधि कही गयी है, वह द्रव्यस्तव है और पाँचवें पञ्चाशक में जो प्रत्याख्यानविधि कही गयी है, वह भावस्तव है। अब इस पञ्चाशक में दोनों का स्वरूप कहने हेतु मङ्गलाचरण करते हैं : __मङ्गलाचरण नमिऊण जिणं वीरं तिलोगपुज्जं समासओ वोच्छं । थयविहिमागमसुद्धं सपरेसिमणुग्गहट्ठाए ॥ १ ।। नत्वा जिनं वीरं त्रिलोकपूज्यं समासतो वक्ष्ये । स्तवविधिमागमशुद्धं स्वपरेषामनुग्रहार्थाय ।। १ ॥ तीनों लोकों में पूजनीय भगवान् महावीर को प्रणाम करके मैं अपने और दूसरों के कल्याण के लिए आगमानुसार शुद्ध स्तवविधि का निरूपण करूँगा ॥ १ ॥ स्तव के दो प्रकार दव्वे भावे य थओ दव्वे भावथयरागओ सम्मं । जिणभवणादिविहाणं भावथओ चरणपडिवत्ती ॥ २ ॥ द्रव्ये भावे च स्तवो द्रव्ये भावस्तवरागत: सम्यक् ।। जिनभवनादिविधानं भावस्तवः चरणप्रतिपत्तिः ।। २ ।। स्तव द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार का होता है। भावस्तव के लिए अनुरागपूर्वक जिनमन्दिर या जिनप्रतिमा का सम्यक् निर्माण करना या करवाना द्रव्यस्तव है और मन, वचन और काय से विरक्त रहना ही भावस्तव है। दूसरे शब्दों में मनोभावों की शुद्धि ही भावस्तव है ।। २ ।। द्रव्यस्तव जिणभवणबिंबठावणजत्तापूजाइ सुत्तओ विहिणा । दव्वत्थउत्ति नेयं भावत्थयकारणत्तेण ॥ ३ ॥ जिनभवन-बिम्बस्थापन-यात्रापूजादि सूत्रतो विधिना । द्रव्यस्तव इति ज्ञेयं भावस्तवकारणत्वेन ।। ३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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