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प्रत्याख्यानविधि पञ्चाशक
सामान्यतया प्रत्याख्यान निर्विषय नहीं होता है अर्थात् अविद्यमान वस्तु का नहीं होता है, अपितु विद्यमान वस्तु का ही होता है, क्योंकि भिन्न-भिन्न देश में भिन्न-भिन्न काल में सभी वस्तुओं का उपभोग होता ही है। जिस प्रकार गाड़ी के उदाहरण में पक्वान्न गाड़ी नहीं होने पर भी गाड़ी के आकार का होने के कारण गाड़ी ही कहा जाता है, इसी प्रकार भिन्न-भिन्न वस्तुओं में भिन्न-भिन्न आकार होता है, उन वस्तुओं का भोग सम्भव है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक वस्तु खाद्य नहीं हो सकती है। अतः सभी वस्तुओं का भोग सम्भव है ॥ ४९ ॥ विरागी जीव का प्रत्याख्यान सफल है
पञ्चम ]
विरईए संवेगा तक्खयओ भोगविगमभावेण ।
सफलं सव्वत्थ इमं भवविरहं इच्छमाणस्स ।। ५० ।।
विरते: संवेगात् तत्क्षयतः भोगविगमभावेन । सफलं सर्वत्रेदं भवविरहं इच्छतः ॥ ५० ॥
भवविरह की इच्छा वाले जीव का विद्यमान या अविद्यमान सर्ववस्तु सम्बन्धी प्रत्याख्यान सफल है, क्योंकि मोक्षाभिलाषा और विरति से जिसका प्रत्याख्यान किया है उसका चारित्रमोहादि कर्म का क्षय होने से भोग नहीं होता है ।। ५० ।।
॥ इति प्रत्याख्यानविधिर्नाम पञ्चमं पञ्चाशकम् ॥
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