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________________ २ पञ्चाशकप्रकरणम् [पञ्चम भावार्थ : वस्तु न हो तो भी यदि उसका प्रत्याख्यान न किया हो तो उसके त्याग का लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि हृदय में उसकी अपेक्षा तो होती ही है। जिस प्रकार कोई पाप न करने पर भी यदि उसके त्याग का नियम नहीं लेता है तो पाप लगता है, क्योंकि उसके अन्त:करण में पाप करने की अपेक्षा होती है। उसी प्रकार वस्तु न हो और भविष्य में मिलने वाली भी न हो तो भी उसका त्याग न करने से तज्जन्य लाभ नहीं मिलता है। इस प्रकार अविद्यमान वस्तु का प्रत्याख्यान भी सफल होता है, अत: उसे करना चाहिए। उपर्युक्त नियम का दृष्टान्त न य एत्थं एगंतो सगडाहरणादि एत्थ दिटुंतो । संतंपि णासइ लहुँ होइ असंतंपि एमेव ।। ४८ ।। न च अत्र एकान्तः शकटाहरणादि अत्र दृष्टान्तः । सदपि नश्यति लघु भवति असदपि एवमेव ।। ४८ ।। अविद्यमान वस्तु भविष्य में कभी मिलेगी ही नहीं - ऐसा सर्वथा सत्य नहीं है। विद्यमान वस्तु भी अचानक नष्ट हो जाती है और अविद्यमान वस्तु भी अचानक मिल जाती है अर्थात् कभी-कभी जिस वस्तु की कोई सम्भावना भी न हो वह मिल जाती है। इस विषय में गाड़ी का उदाहरण है। विशेष : एक बार एक मुनि अनेक भव्य जीवों को उपर्युक्त उपदेश दे रहे थे। उसे सुनकर एक ब्राह्मण ने उपहास करने के लिए मुनि के पास जाकर ऐसा प्रत्याख्यान लिया कि “मैं गाड़ी नहीं खाऊँगा'। एक दिन वह ब्राह्मण जंगल से भूखा-प्यासा आ रहा था कि एक राजकुमारी उसे सामने मिली। उस राजकुमारी ने गाड़ी के आकार का पक्वान्न ब्राह्मण को खिलाने का नियम किया था। वह पक्वान तैयार करके ब्राह्मण को ढूँढ़ ही रही थी कि यह ब्राह्मण उसे मिला। उसने पक्वान्न ब्राह्मण को दिया। ब्राह्मण ने पक्वान्न को गाड़ी के आकार का देखकर खाने से इनकार कर दिया। फलत: मुनि की बात उसे सत्य प्रतीत हुई – इस प्रकार कभी-कभी असम्भव भी सम्भव हो जाता है ॥ ४८ ॥ प्रत्याख्यान विषयरहित नहीं है ओहेणाविसयंपि हु ण होइ एयं कहिंचि णियमेण । मिच्छासंसज्जियकम्मओ तहा सव्वभोगाओ ॥ ४९ ॥ ओघेनाविषयमपि खलु न भवति एतत् क्वचित् नियमेन । मिथ्यासंसज्जितकर्मत: तथा सर्वभोगात् ।। ४९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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