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पञ्चम]
प्रत्याख्यानविधि पञ्चाशक
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संविग्नान्यसाम्भोगिकानां देशयेत् श्राद्धककुलानि ।। अतरंतो वा साम्भोगिकानां यथा वा समाधिना ।। ४१ ।।
आहार-प्रत्याख्यान ग्रहण करने पर स्वयं पालन करता हुआ दूसरों को आहार देने और स्वयं भोजन कराने तथा समान सामाचारी वाले साधुओं को इनइन घरों से आहार मिलेगा, इत्यादि आहार सम्बन्धी उपदेश देने में दोष नहीं लगता है, जैसा कि अन्यत्र प्राणातिपात-विरमण आदि में लगता है।
तात्पर्य : प्राणातिपातविरति आदि व्रतों का स्वीकार त्रिविध (मनसा, वाचा, कर्मणा) होने के कारण प्राणातिपात विरमण व्रत करने वाला प्राणातिपात आदि पाप करने को कहे या अनुमोदन करे तो व्रत भंग होता है, किन्तु आहारप्रत्याख्यान में आहार देने या आहार सम्बन्धी उपदेश देने से प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है ।। ३९ ॥
इसी प्रकार आहार का प्रत्याख्यान करने वाले साधु को भी यदि आचार्य, बीमार, बालक और वृद्ध साधुओं के लिए कल्प्य आहार मिल सके तो भिक्षाटन करनी चाहिए और इस प्रकार आत्मशक्ति के अनुरूप प्रयत्न करके उनको अशनादि आहार उपलब्ध कराना चाहिए ।। ४० ।।
तथा नये आये हुए मोक्षाभिलाषी भिन्न सामाचारी वाले साधुओं को दानमना गृहस्थों के घर बतलाना चाहिए अथवा बीमार होने के कारण समान सामाचारी वाले साधुओं के लिए आहार न ला सकें तो उन्हें भी श्रद्धालु दाता गृहस्थों के घरों को बतलाना चाहिए अथवा स्वयं को और दूसरे साधुओं को जैसी सुविधा हो वैसा करना चाहिए ।। ४१ ।।
श्रावकों के लिए दान-उपदेश की विधि एवमिह सावगाणवि दाणुवएसाइ उचियमो णेयं । सेसम्मिवि एस विही तुच्छस्स दिसादवेक्खाए ।। ४२ ॥ एवमिह श्रावकाणामपि दानोपदेशादि उचितमेव ज्ञेयम् । शेषेऽपि एषः विधिः तुच्छस्य दिगाद्यपेक्षया ।। ४२ ।।
श्रावकों के लिए भी इसी प्रकार शक्ति हो तो सुसाधुओं को आहार का दान देना और शक्ति न हो तो श्रद्धालुओं के घर बतलाना आदि उचित है - ऐसा जानना चाहिए। शेष वस्त्रादि के विषय में भी यही विधि है अर्थात् शक्ति हो तो वस्त्रादि का दान करें अन्यथा दाताओं के घर बतलावें।
गरीब श्रावक जो सभी साधुओं को वस्त्र नहीं दे सकता है वह दिशा की
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