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________________ ९४ पञ्चाशकप्रकरणम् [पञ्चम सरिऊण विसेसेणं पच्चक्खायं इमं मए पच्छा । तह संदिसाविऊणं विहिणा भुंजंति धम्मरया ॥ ३८ ॥ विधिना प्रतिपूर्णे भोगो विगते च स्तोककाले तु । शुभधातुयोगभावे चित्तेनानाकुलेन तथा ।। ३६ ।। कृत्वा कुशलयोगं उचितं तत्कालगोचरं नियमात् । गुरुप्रतिपत्तिप्रमुखं मङ्गलपाठादिकं चैव ।। ३७ ।। स्मृत्वा विशेषेण प्रत्याख्यातम् इदं मया पश्चात् ।। तथा संदेश्य विधिना भुञ्जन्ति धर्मरताः ।। ३८ ।। विधिपूर्वक प्रत्याख्यान के पूर्ण होने के थोड़े समय बाद वात-पित्तकफ - इन तीन धातुओं के सम बनने और कायादि योगों के स्वस्थ बनने पर शान्तचित्त से भोजन करना चाहिए। गोचरी करने के परिश्रम से शरीर की धातुएँ विषम बन जाती हैं और शरीर अस्वस्थ हो जाता है। इसलिए थोड़े समय बाद जब धातुएँ सम हो जायें और शारीरिक योग स्वस्थ हो जाये तब शान्तचित्त से भोजन करना चाहिए ।। ३६ ॥ धर्म में अनुरक्त जीव अपनी भूमिका के अनुसार भोजन के समय अर्थात् भोजन से पूर्व करने योग्य क्रियाएँ - जैसे माँ-बाप, धर्माचार्य और देव की उचित पूजा, परिवार में जो बीमार हो उसकी सेवा आदि तथा नमस्कार मन्त्र का पाठ आदि करके मैंने यह प्रत्याख्यान किया है - ऐसा विशेष रूप से याद करके बड़ों की आज्ञा लेकर विधिपूर्वक भोजन करते हैं ।। ३७-३८ ।। ६.स्वयं पालनद्वार सयपालणा य एत्थं गहियम्मिवि ता इमम्मि अन्नेसिं। दाणे उवएसम्मि य ण होति दोसा जहऽण्णत्थ ।। ३९ ॥ कयपच्चक्खाणोऽवि य आयरियगिलाणबालवुड्डाणं । देज्जाऽसणाइ संते लाभे कयवीरियायारो ।। ४० ॥ . संविग्गअन्नसंभोइयाण दंसेज्ज सड्ढगकुलाणि । अतरंतो वा संभोइयाण जह वा समाहीए । ४१ ।। स्वयंपालना च अत्र गृहीतेऽपि तस्माद् अस्मिन् अन्येभ्यः । दाने उपदेशे च न भवन्ति दोषा यथाऽन्यत्र ॥ ३९ ॥ कृतप्रत्याख्यानोऽपि च आचार्यग्लान-बाल-वृद्धेभ्यः । दद्याद् अशनादि सति लाभे कृतवीर्याचारः ॥ ४० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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