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________________ पञ्चम प्रत्याख्यानविधि पञ्चाशक न च तस्य तेष्वपि तथा निरभिष्वङ्गस्तु भवति परिणाम: । प्रतीकारलिङ्गसिद्धस्तु नियमतः अन्यथारूप: ।। २२ ।। अपवादों के होने पर भी योद्धा या साधु का जीवन के प्रति अनासक्त भाव (नि:स्पृह परिणाम) अन्यथा नहीं होता है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो साधु उसकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त को स्वीकार करने रूप प्रतिकार और योद्धा शरण की खोज रूप प्रतिकार करता, किन्तु ऐसा दोनों में नहीं देखा जाता है ।। २२ ।। ण य पढमभाववाघायमो उ एवंपि अवि य तस्सिद्धी । एवं चिय होइ दढं इहरा वामोहपायं तु ।। २३ ।। न च प्रथमभावव्याघातमो तु एवमपि अपि च तत्सिद्धिः ।। एवमेव भवति दृढम् इतरथा व्यामोहपादं तु ।। २३ ।। अपवादों को स्वीकार करना या युद्ध में प्रवेश-निर्गम आदि करना, मूलभाव (साधु के लिए समत्व को प्राप्त करना और योद्धा के लिए विजय प्राप्त करना) में बाधक नहीं है, अपितु उन अपवादों से मूलभाव की सिद्धि की ही सम्भावना दृढ़ हो जाती है। अपवादों को स्वीकार नहीं करने से साधु की सामायिक और योद्धा की विजयेच्छा मूढ़ता तुल्य हैं। ये अपवाद समभाव और विजय की सिद्धि में साधन का काम करते हैं ।। २३ ।। उभयाभावेऽवि कुतोऽवि अग्गओ हंदि एरिसो चेव । तक्काले तब्भावो चित्तखओवसमओ णेओ ।। २४ ।। उभयाभावेऽपि कुतोऽपि अग्रतो हंदि ईदृशश्चैव । तत्काले तद्भावश्चित्रक्षयोपशमतो ज्ञेयः ।। २४ ॥ प्रश्न : यद्यपि सामायिक योद्धा के अध्यवसाय के समान है, फिर भी कालान्तर में किसी जीव का पतन तो होता ही है, इसलिए सामायिक को सापवाद मानना ही उपयुक्त है ? उत्तर : कालान्तर में अर्थात् साधु के सामायिक लेने के बाद और योद्धा के युद्ध करते समय किसी कारणवश (साधु के पक्ष में परीषह आदि और योद्धा के पक्ष में शत्रुभय आदि कारणों से) दोनों (साधु के वर्तमान भवक्षय और मोक्ष तथा योद्धा के मरण और शत्रु-विजय) का अभाव हो तो भी साधु के सामायिक स्वीकार करते समय और योद्धा के युद्ध में प्रवेश करते समय उसका भाव (साधु का सामायिक स्वीकार रूप परिणाम तथा योद्धा का विजय का अध्यवसाय) ऐसा ही होता है। अर्थात् मरना या विजय प्राप्त करना, ऐसा ही भाव होता है। कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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