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________________ पञ्चम ] प्रत्याख्यानविधि पञ्चाशक ८५ प्रश्न : पाप से बचने के लिए प्रत्याख्यान है और साधुओं ने सभी पापव्यापारों के त्यागरूप सामायिक को स्वीकार किया है तो उन साधुओं को प्रत्याख्यान से क्या लाभ है ? उत्तर : सभी पापव्यापारों के त्यागरूप सामायिक में भी यह प्रत्याख्यानग्रहण भगवान् की आज्ञा होने से तथा अप्रमाद की वृद्धि का कारण होने से लाभकारी ही है। धर्म भगवान् की आज्ञा का पालन करने में है ।। १३ ।। प्रत्याख्यान से अप्रमाद की वृद्धि में अनुभव-प्रमाण एत्तो य अप्पमाओ जायइ एत्थमिह अणुहवो पायं । विरतीसरणपहाणे सुद्धपवित्तीसमिद्धफलो ।। १४ ।। इतश्च अप्रमादो जायते अत्रेह अनुभवः प्रायः । विरतिस्मरणप्रधानः शुद्धप्रवृत्तिसमृद्धिफल: ।। १४ ।। प्रत्याख्यान से सामायिक में अप्रमाद की वृद्धि होती है, इसमें अनुभव प्रमाण है अर्थात् प्रत्याख्यान करने वालों को प्रायः अप्रमाद की वृद्धि का अनुभव होता है। इससे आन्तर और बाह्य – ये दो लाभ होते हैं। अप्रमाद विरति का स्मरण कराता है - यह आन्तर लाभ है और अप्रमाद से सम्पूर्णतया शुद्ध प्रवृत्ति होती है - यह बाह्य लाभ है। यद्यपि सामायिक में रहते हुए साधु अशुद्ध प्रवृत्ति का त्याग कर देता है, फिर भी प्रमाद, रोग, सत्त्व-गुण का अभाव आदि कारणों से अथवा दुषित आहार के सेवन आदि से साधु-जीवन में दोष आ जाना सम्भव है। प्रत्याख्यान से इन सबका नाश हो जाता है और सत्त्व-गुण की अभिवृद्धि होती है ।। १४ ।। तिविहार आदि प्रत्याख्यान से समभाव भंग नहीं होता ण य सामाइयमेयं बाहइ भेयगहणेवि सव्वत्थ । समभाव-पवित्तिणिवित्तिभावओ ठाणगमणं व ।। १५ ।। न च सामायिकमेतद् बाधते भेदग्रहणेऽपि सर्वत्र । समभावप्रवृतिनिवृत्तिभावत: स्थानगमनमिव ।। १५ ।। प्रश्न : प्रत्याख्यान करने वाला चारों आहार का त्याग कर दे तब तो ठीक, अन्यथा तिविहार आदि अमुक प्रकार के आहार का त्याग करे तो उसमें सामायिक का भंग होगा। क्योंकि जिसका त्याग नहीं किया है उसके प्रति उसका रागभाव है और जिसका त्याग किया है उसके प्रति उसका द्वेषभाव है। इसी राग और द्वेषभाव के कारण उसकी सामायिक अर्थात् समभाव का भंग होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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