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________________ पञ्चाशकप्रकरणम् . [पञ्चम घी, ३. दूध, ४. तेल, ५. गुड़, ६. तली हुई वस्तुएँ, ७. मक्खन, ८. मधु, ९. मांस और १०. मदिरा। इनमें से अन्तिम चार विगय को महाविगय कहते हैं और वे अभक्ष्य भी हैं। विगय के द्रव और पिण्ड – ये दो भेद हैं। उसमें मक्खन, तली हुई वस्तुएँ, मांस, दही, घी, गुड़ - इन छह पिण्डविगय के त्याग में आयंबिल के आठ और पच्चमक्खिएणं - ये नौ आगार हैं। दूध इत्यादि चार द्रवविगय के त्याग में उक्खित्तविवेगेणं को छोड़ कर पिण्डविगय के शेष आठ आगार हैं। विगयप्रत्याख्यान के नौ आगारों में पडुच्चमक्खिएणं को छोड़कर आठ आगारों का वर्णन हो चुका है। पडुच्चमक्खिएणं (प्रतीत्यम्रक्षितेन) - प्रतीत्यम्रक्षित आगार का अर्थ है अपेक्षाकृत चुपड़ा हुआ। बिल्कुल रुक्ष की अपेक्षा जो थोड़ा (नहीं के बराबर) चुपड़ा हो वह प्रतीत्यम्रक्षित है। आटे में तेल या घी डालकर बनायी गयी रोटी आदि को यदि विगय-प्रत्याख्यान वाला खाये तो नियम भंग नहीं होता है। यदि ज्यादा डालकर या लगाकर खाया जाये तो नियम भंग होता है ।। ८-११ ।। आगारों का प्रयोजन वयभंगो गुरुदोसो थेवस्सवि पालणा गुणकरी उ । गुरुलाघवं च णेयं धम्मम्मि अओ उ आगारा ।। १२ ।।। व्रतभङ्गो गुरुदोष: स्तोकस्यापि पालना गुणकरी तु । गुरुलाघवं च ज्ञेयं धर्मे अतस्तु आगाराः ।। १२ ।। नियम भंग से अशुभ कर्मबन्ध इत्यादि महान दोष लगते हैं, क्योंकि उसमें भगवदाज्ञा की विराधना होती है। जबकि छोटे भी नियम के पालन से कर्म निर्जरा रूप महान् लाभ होता है, क्योंकि उसमें शुभ अध्यवसाय होता है। धर्म में लाभ और अलाभ का विचार करके जिस प्रकार भी अधिक लाभ हो उस प्रकार करना चाहिए। इसीलिए प्रत्याख्यान में आगार रखे गये हैं ।। १२ ।। ३. सामायिक द्वार प्रत्याख्यान साधुओं को भी लाभकारी है . सामइएवि हु सावज्जचागरूवे उ गुणकरं एयं । अपमायवुड्डिजणगत्तणेण आणाउ विण्णेयं ।। १३ ।। सामायिकेऽपि खलु सावद्यत्यागरूपे तु गुणकरमेतत् । अप्रमादवृद्धिजनकत्वेन आज्ञातो विज्ञेयम् ।। १३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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