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________________ पञ्चम ] प्रत्याख्यानविधि पञ्चाशक (ग) अच्छेण (स्वच्छ ) : तीन बार उबालने पर अचित्त बना हुआ पानी अच्छ कहलाता है। (घ) बहुलेण : बहुल अर्थात धोवन । चावल, तिल आदि को धोने से जो पानी निकला हो वह बहुल है। ८३ (ङ) ससित्थेण (ससिक्थेन) : ससिक्त अर्थात् अनाज के दाने वाला, माँड़ में या चावल के धोवन वगैरह में अनाज का कोई दाना रह गया हो तो ससिक्थ है। (च) असित्थेण ( असिक्थेन) अर्थात् अनाज के दाने के बिना। जिसमें अनाज का दाना न हो, ऐसा माँड़ अथवा चावल का धोवन इत्यादि असिक्थ है। ससिक्थ और असिक्थ का भावार्थ यह है कि लेवेण इत्यादि आगारों में जो पानी की छूट है, उसमें अनाज का कण न हो तो ज्यादा अच्छा है, किन्तु यदि कोई कण आ जाये तो छूट है। ९. चरिम : अर्थात् अन्तिम, यहाँ चरिम शब्द से दिन और वर्तमान भव दोनों का अन्तिम भाग विवक्षित है। इसलिए चरिम के दिवसचरिम और भवचरिम ये दो भेद हैं। दिवस के अन्तिम भाग (सूर्यास्त ) तक अथवा दूसरे दिन के सूर्योदय के पहले तक किया गया प्रत्याख्यान दिवसचरिम प्रत्याख्यान है तथा जीवन के अन्तिम समय तक ( जीवनपर्यन्त ) किया गया प्रत्याख्यान भवचरिम प्रत्याख्यान कहा जाता है। दिवसचरिम प्रत्याख्यान में सूर्यास्त तक या दूसरे दिन के सूर्योदय तक दो, तीन या चार प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है और भवचरिम प्रत्याख्यान में जीवनपर्यन्त तीन या चार प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है। दिवसचरिम और भवचरिम में अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं और सव्वसमाहिवत्तियागारेणं ये चार आगार हैं, जिनका वर्णन पहले किया Jain Education International - जा चुका है। १०. अभिग्गह (अभिग्रह) : विशिष्ट नियम या प्रतिज्ञा लेना अभिग्रह है, इसमें चार आगार होते हैं, जो चरिम प्रकरण में कहे जा चुके हैं और पाँचवाँ चोलपट्टागारेणं होता है। जिस साधु ने उपाश्रय में बिल्कुल निर्वस्त्र रहने का नियम लिया हो उसको अचानक किसी गृहस्थ के आने पर चोलपट्ट पहनने की छूट है। ११. विगय ( विकृति) : घी आदि विगय ( विकृति) का त्याग विगय प्रत्याख्यान कहलाता है। घी, तेल आदि विकार करने वाले होने के कारण विगय (विकृति) कहलाते हैं। विगय के दस भेद हैं, जो इस प्रकार हैं- १. दही, २. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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