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पञ्चाशकप्रकरणम्
[ पञ्चम
३. पुरिमड्ड-अवड्ड (पूर्वार्ध । अपार्ध) अर्थात् दिन का प्रथमा भाग पुरिमड्ड कहलाता है। सूर्योदय से दोपहर तक आहार-त्याग पुरिमड्ड प्रत्याख्यान कहलाता है। अवड्ड में अप और अर्ध दो शब्द हैं। अप अर्थात् पीछे का। अपराह्न के आधे का आधा भाग अपार्ध कहलाता है। अर्थात् सूर्योदय से तीन प्रहर तक आहार का त्याग अवड्ड कहलाता है। पुरिमड्ड और अवड्ड में पोरिसी के छः आगार और महत्तरागार - ये सात आगार या अपवाद हैं।
महत्तरागार : महत्तर अर्थात् प्रत्याख्यान से जितनी कर्म निर्जरा होती है उससे अधिक कर्म-निर्जरा का कारण उपस्थित होने पर या कोई महत्त्वपूर्ण कार्य
आ जाने पर समय से पहले भोजन करना पड़े तो छूट है। जैसे कोई साधु बीमार पड़ गया हो या जिनमन्दिर या संघ पर कोई आपत्ति आ पड़ी हो और उसका निवारण उसी व्यक्ति को करना पड़े जिसने पुरिमड्ड आदि का प्रत्याख्यान किया हो तो ऐसे कार्य को करने के लिए प्रत्याख्यान को समय से पहले पूरा करना आवश्यक होने से पहले पूरा करे तो नियम भंग नहीं होता है।
४. एकासण-बियासण (एकाशन-व्यशन) : एकाशन अर्थात् एक बार भोजन करना और दूसरा अर्थ है एक आसन अर्थात् एक ही स्थान पर बैठकर एक बार भोजन करना एकासन कहलाता है। उसी प्रकार एक ही आसन पर बैठकर दो बार भोजन करना बियासण कहलाता है।
एकासण और बियासण में नवकार के दो आगार और पुरिमड्ड के अन्तिम दो आगार तथा सागारिआगारेणं, आउंटणपसारेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं - ये चार, इस प्रकार कुल आठ आगार हैं। इनमें से प्रथम चार का वर्णन हो गया है। शेष चार इस प्रकार हैं -
(क) सागारिआगारेणं (सागारिकागारेण) अर्थात् गृहस्थ सम्बन्धी छूट। साधु को गृहस्थ के समक्ष भोजन नहीं करना चाहिए, किन्तु भोजन करते समय कोई गृहस्थ अचानक आ जाये तो साधु को भोजन बन्द कर देना चाहिए और ऐसा लगे कि गृहस्थ देर तक रुकेगा तो दूसरी जगह जाकर भोजन कर लेना चाहिए, इससे एकासन प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता है।
__ गृहस्थों के लिए यह आगार इस प्रकार है - भोजन शुरु करने के बाद ऐसा व्यक्ति आ जाये जिसकी नजर लगने से खाना नहीं पचता हो तो एकासणा वाला गृहस्थ दूसरे स्थान पर जाकर भोजन करे तो नियम भंग नहीं होता है।
(ख) आउंटणपसारेणं (आकुंचनप्रसारण) : यदि कोई व्यक्ति पूरा भोजन करने तक स्थिर न बैठ सके और पैर आदि अंगों को संकुचित करे या
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