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________________ [ चतुर्थ चाहिए। यदि मोक्ष के हेतुओं की प्रार्थना आगम सम्मत नहीं होती तो बोधिलाभ की माँग नहीं की जाती । अत: यह सिद्ध है कि यह प्रार्थना आगम-सम्मत है ।। ३६ ।। ७० ऋद्धि की इच्छा से तीर्थङ्करत्व की आशंसा भी निदान है एवं च दसाईसुं तित्थयरंमिवि णियाणपडिसेहो । जुत्तो भवपडिबद्धं साभिस्संगं तयं जेण ।। ३७ ।। एवं च दशादिषु युक्तो भवप्रतिबद्धं पञ्चाशकप्रकरणम् तीर्थङ्करेऽपि निदानप्रतिषेधः । साभिष्वङ्गं तकं येन ।। ३७ ।। प्रश्न : मोक्ष के हेतुओं की प्रार्थना निदान नहीं है यह बात सिद्ध हो गयी । तीर्थङ्करपना भी मोक्ष का कारण है, लेकिन तीर्थङ्कर बनने वाला जीव अनेक जीवों पर उपकार करने के साथ-साथ स्वकल्याण भी करता है, इसलिए तीर्थङ्कर बनने की प्रार्थना भी निदान ही कहलायेगी । अन्यथा फिर दशाश्रुतस्कन्ध आदि ग्रन्थों में उसका निषेध क्यों किया गया है ? उत्तर : दशाश्रुतस्कन्ध आदि ग्रन्थों में तीर्थङ्करत्व को प्राप्त करने की प्रार्थना का निषेध किया जाना युक्त है, क्योंकि वैसी प्रार्थना अप्रशस्त रागादि से युक्त होने के कारण संसार का कारण है। Jain Education International भावार्थ : तीर्थङ्करों की समृद्धि देखकर या सुनकर उस समृद्धि को पाने की इच्छा से तीर्थङ्कर बनने की प्रार्थना करना रागयुक्त है। उसमें उपकार करने की नहीं, अपितु समृद्धि प्राप्त करने की भावना होती है। ऐसी भावना से तीर्थङ्करत्व नहीं मिलता और उल्टे पापकर्म का बन्ध होता है। इसलिए तीर्थङ्कर की समृद्धि की इच्छा से तीर्थङ्करत्व की प्रार्थना निदान रूप है, अतः दशाश्रुतस्कन्ध आदि में इसका निषेध उचित ही है ॥ ३७ ॥ - परोपकार की भावना से तीर्थङ्करत्व की अभिलाषा निदान नहीं जं पुणणिरभिस्संगं धम्मा एसो अणेगसत्तहिओ । णिरुवमसुहसंजणओ अपुव्वचिंतामणीकप्पो ॥ ३८ ॥ ता एयाणुट्ठाणं हियमणुवहयँ पहाणभावस्स । तम्मि पवित्तिसरूवं अत्थापत्तीऍ तमदुट्टं ।। ३९ ।। यत्पुनर्निरभिष्वङ्गं निरुपमसुखसञ्जनकोऽपूर्व तदेतदनुष्ठानं हितमनुपहतं तस्मिन् प्रवृत्तिस्वरूपं अर्थापत्त्या धर्मादेषोऽनेकसत्त्वहितः । - चिन्तामणिकल्पः ।। ३८ ।। प्रधानभावस्य । तददुष्टम् ।। ३९ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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