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________________ पञ्चाशकप्रकरणम् [चतुर्थ चैत्यवन्दन की महत्ता कम्मविसपरममंतो एवं एयति बेति सव्वण्णू । मुद्दा एत्थुस्सग्गो अक्खोभो होइ जिणचिण्णो ।। २८ ।। कर्मविषपरममन्त्र एवमेतदिति ब्रुवन्ति सर्वज्ञाः । मुद्रा अत्रोत्सर्गोऽक्षोभो भवति जिनचीर्णः ।। २८ ।। पूजापूर्वक किया गया यह चैत्यवन्दन कर्मरूपी विष का नाश करने वाला परममन्त्र है - ऐसा सर्वज्ञदेव कहते हैं, इसलिए यह करने योग्य है। इस चैत्यवंदन की मुद्रा जिनों द्वारा आचरित अविचलित कायोत्सर्ग ही मुद्रा है ।। २८ ।। (६) प्रणिधानप्रकरण एयस्स समत्तीए कुसलं पणिहाणमो उ कायव्वं । तत्तो पवित्तिविग्घजयसिद्धि तह य स्थिरीकरणं ।। २९ ।। एतस्य समाप्तौ कुशलं प्रणिधानं तु कर्तव्यम् । ततः प्रवृत्तिविघ्नजयसिद्धिस्तथा च स्थिरीकरणम् ।। २९ ॥ चैत्यवन्दन समाप्त होने पर प्रणिधान (जिनेन्द्रदेव के समक्ष शुभ संकल्प) करना चाहिए, क्योंकि प्रणिधान से धर्मकार्य में प्रवृत्ति, उसमें आने वाले विघ्नों पर विजय, शुरू किये गये कार्य की सिद्धि और अपनी एवं दूसरे की धर्मप्रवृत्ति को स्थिर बनाना सम्भव होता है। इसलिए धर्मकार्य में प्रवृत्ति आदि इच्छा वाले व्यक्ति को प्रणिधान अर्थात् शुभ संकल्प अवश्य करना चाहिए ।। २९ ।। __ प्रणिधान निदान रूप नहीं है एत्तो च्चिय ण णियाणं पणिहाणं बोहिपत्थणासरिसं । सुहभावहेउभावा णेयं इहराऽपवित्ती उ ॥ ३० ॥ अत एव न निदानं प्रणिधानं बोधिप्रार्थनासदृशम् ।। शुभभावहेतुभावाद् ज्ञेयमितरथाऽप्रवृत्तिस्तु ।। ३० ॥ प्रणिधान (शुभ संकल्प) को निदान नहीं कह सकते हैं, क्योंकि निदान में अशुभ कर्मबन्ध की कारणभूत लौकिक आकांक्षाओं की पूर्ति की माँग की जाती है, जबकि प्रणिधान में शुभ की। अशुभ कर्म का बंध कराने वाली लौकिक वस्तुओं की माँग निदान है, न कि शुभ की। प्रणिधान बोधि की प्रार्थना के समान है। बोधि-प्रार्थना के ही समान शुभभाव का हेतु होने के कारण प्रणिधान निदान नहीं है। यदि प्रणिधान निदान रूप होता तो वह चैत्यवन्दन के अन्त में उसे करने का निर्देश नहीं दिया जाता, क्योंकि निदान शास्त्र-निषिद्ध है ।। ३० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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