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पूजाविधि पञ्चाशक
तृतीय पञ्चाशक में चैत्यवन्दन ( जिन - प्रतिमा के वंदन ) की विधि बतलायी गयी है। वन्दन के साथ पूजन भी अपेक्षित है। अतः अब पूजाविधि कहने के लिए मङ्गलाचरण करते हैं
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मङ्गलाचरण
नमिऊण महावीरं जिणपूजाए विहिं पवक्खामि । संखेवओ महत्थं गुरूवएसाणुसारेण ॥ १ ॥ नत्वा महावीरं जिनपूजाया विधिं प्रवक्ष्यामि । सङ्क्षेपतो महार्थं गुरूपदेशानुसारेण ॥ १ ॥
भगवान् महावीर को प्रणाम करके मैं गुरुजनों द्वारा प्रदत्त उपदेश के अनुसार संक्षेप में महार्थ अर्थात् परम पद को प्राप्त कराने वाली जिनपूजा की विधि का विवेचन करूँगा ।। १ ।।
पूजा में विधि की महत्ता
विहिणा उकीरमाणा सव्वच्चिय फलवती भवति चेट्ठा । इहलोइयावि किं पुण जिणपूया उभयलोहिया ॥ २ ॥ विधिना तु क्रियमाणा सर्वैव फलवती भवति चेष्टा । ऐहलौकिक्यपि किं पुनः जिनपूजा उभयलोकहिता ।। २ ।।
यदि खेती आदि क्रियाएँ भी विधिपूर्वक की जायें तो वे इस लोक में फलवती होती हैं तो फिर विधिपूर्वक की गई जिनपूजा उभयलोक ( इहलोक और परलोक ) में फलवती क्यों नहीं होगी ? ।। २ ।।
पूजा में सामान्य से विधि निर्देश
काले सुइभूएणं विसिट्ठपुप्फाइएहिं विहिणा उ। सारथुइथोत्तगरुई जिणपूजा होइ कायव्वा ॥ ३ ॥
काले शुचिभूतेन विशिष्टपुष्पादिभिः विधिना सारस्तुतिस्तोत्रगुर्वी जिनपूजा भवति
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तु ।
कर्तव्या ।। ३ ।।
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