SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्यवन्दनविधि पञ्चाशक - दूसरे पञ्चाशक में जिन-दीक्षा की विधि का विवेचन किया गया है। जिन-दीक्षा को स्वीकार करने वाले साधक को प्रतिदिन जिन-मूर्ति के समक्ष चैत्यवन्दन करना आवश्यक है। अत: अब चैत्यवन्दन की विधि कहने हेतु मङ्गलाचरण करते हैं - मङ्गलाचरण नमिऊण वद्धमाणं सम्मं वोच्छामि वंदणविहाणं । उक्कोसाइतिभेयं मुद्दाविण्णासपरिसुद्धं ।। १ ।। नत्वा वर्धमानं सम्यग् वक्ष्यामि वन्दनविधानम् । उत्कृष्टादित्रिभेदं मुद्राविन्यास-परिशुद्धम् ।। १ ॥ भगवान् महावीर को प्रणाम करके मैं वन्दनविधान अर्थात् चैत्यवन्दन विधि का सम्यक प्रतिपादन करूँगा, जो उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य - ऐसी तीन प्रकार की है और मुद्रा-विन्यास की अपेक्षा से सर्वथा शुद्ध है ।। १ ।। चैत्यवन्दन के तीन प्रकार णवकारेण जहण्णा दंडग-थुइजुयल मज्झिमा णेया । संपुण्णा उक्कोसा विहिणा खलु वंदणा तिविहा ।। २ ।। नवकारेण जघन्या दण्डकस्तुतियुगलमध्यमा ज्ञेया ।। सम्पूर्णा उत्कृष्टविधिना खलु वन्दना त्रिविधा ।। २ ।। केवल नमस्कार मन्त्र के द्वारा वन्दना करना जघन्य वन्दना कही जाती है। पाँच दण्डकसूत्रों और तीन स्तुतियों - इन दोनों के द्वारा वन्दना करना मध्यमा वन्दना है और सम्पूर्ण विधिपूर्वक अर्थात् पाँच दण्डकसूत्रों, तीन स्तुतियों और प्रणिधानपाठ से जो वन्दना की जाती है वह उत्कृष्ट वन्दना है। इस प्रकार जघन्या, मध्यमा और उत्कृष्टा के भेद से वन्दना-विधि तीन प्रकार की होती है ॥ २ ॥ दूसरी तरह से वन्दना के तीन प्रकार अहवावि भावभेया ओघेण अपुणबंधगाईणं । सव्वावि तिहा णेया सेसाणमिमी ण जं समए ।। ३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy