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________________ पञ्चाशकप्रकरणम् [द्वितीय दीक्षार्थी से विधिकथन भुवणगुरुगुणक्खाणा तम्मी संजायतिव्वसद्धस्स । विहिसासणमोहेणं तओ पवेसो तहिं एवं ।। २४ ।। भुवनगुरुगुणाख्यानात् तस्मिन् सञ्जाततीव्रश्रद्धस्य । विधिशासनमोघेन ततः प्रवेशः तस्मिन्नेवम् ।। २४ ।। फिर जिनेन्द्रदेव के वीतरागता आदि गुणों का वर्णन करने से उनके प्रति उत्पन्न तीव्र श्रद्धावाले उस दीक्षार्थी को संक्षेप में जिन-शासन की विधि बतलानी चाहिये तथा यह बतलाना चाहिये कि तुम्हारी अंजलि में पुष्प दिया जाएगा। तुम्हारी आँखें ढक दी जाएँगी। तुमको पुष्प जिनेन्द्रदेव की प्रतिमा पर डालना होगा - इस प्रकार कहकर विधिपूर्वक उसको समवसरण में प्रवेश कराना चाहिये ।। २४ ।। दीक्षार्थी की शुभाशुभ गति जानने के उपाय वरगंधपुप्फदाणं सियवस्थेणं तहच्छिठयणं च । आगइ-गइ-विण्णाणं इमस्स तह पुप्फपाएणं ।। २५ ।। वरगन्धपुष्पदानं सितवस्त्रेण तथाक्षिस्थगनश्च । आगति-गति-विज्ञानम् अस्य तथा पुष्पपातेन ।। २५ ॥ दीक्षार्थी के हाथों में सुगन्धित पुष्प देकर उसकी आँखों को श्वेतवस्त्र से आवृत्त कर देना चाहिये और उसको निर्भीक होकर जिनबिम्ब पर पुष्प फेंकने को कहना चाहिये। इस पुष्पपात से उसकी आगति अर्थात् वह किस गति से आया है ? और गति अर्थात् वह किस गति में जायेगा? इसे जानना चाहिये। यदि पुष्प समवसरण में पड़ें तो दीक्षाराधना से सुगति होगी और यदि समवसरण से बाहर पड़ें तो उसकी दुर्गति होगी, ऐसा जानना चाहिये ।। २५ ।। शुभ और अशुभ गतिविज्ञान विषयक मतमतान्तर अभिवाहरणा अण्णे णियजोगपवित्तिओ य केइत्ति । दीवाइजलणभेया तहुत्तरसुजोगओ चेव ।। २६ ।। अभिव्याहरणादन्ये निजयोगप्रवृत्तितश्च केचिदिति । दीपादिज्वलनभेदात् तथोत्तरसुयोगतश्चैव ।। २६ ॥ यहाँ कुछ आचार्य कहते हैं कि उस समय दीक्षार्थी या किसी अन्य के द्वारा उच्चारित शुभाशुभसूचक सिद्धि, वृद्धि शब्दों के आधार पर या क्रिया करते १. 'तहच्छिठवणं' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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