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पञ्चाशकप्रकरणम्
[प्रथम
गोसे भणिओ य विही इय अणवरयं तु चिट्ठमाणस्स । भवविरहबीयभूओ जायइ चारित्तपरिणामो ॥ ५० ॥ गोसे भणितश्च विधि इति अनवरतं तु चेष्टमानस्य । भवविरहबीजभूतो जायते चारित्रपरिणामः ॥ ५० ॥
प्रात:काल की विधि कह दी गई। उपर्युक्त विधि के अनुसार सतत अनुष्ठान करने वाले श्रावक को संसार-वियोग के कारणरूप चारित्र (दीक्षा) लेने का परिणाम उत्पन्न होता है ।। ५० ।।
॥ इति श्रावकधर्मविधिर्नाम प्रथमं पञ्चाशकम् ॥
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