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________________ प्रथम ] श्रावकधर्मविधि पञ्चाशक प्रयत्न करना तथा जिसका प्रत्याख्यान नहीं किया हो उसका भी यथाशक्ति त्याग करना और विषय - व्रतों का स्वरूप तथा जीवादि तत्त्वों के स्वरूप को जानना, इन पाँच बातों को कुम्हार के चक्र घुमाने वाले दण्ड के उदाहरण से समझ लेना चाहिये। जिस प्रकार कुम्हार के द्वारा चक्र के किसी एक भाग को चलाने से पूरा चक्र घूमता है, उसी प्रकार यहाँ सम्यक्त्व और अणुव्रतों का निरूपण करने से उनकी प्राप्ति के उपाय आदि का भी सूचन हो जाता है ।। ३४ ।। गहणादुवरि पयत्ता होइ असन्तोऽवि विरइपरिणामो । अकुसलकम्मोदयओ पडइ अवण्णाइ लिंगमिह ।। ३५ ।। ग्रहणादुपरि प्रयत्नाद् भवति असन्नपि विरतिपरिणामः । अकुशलकर्मोदयतः पतति अवर्णादि लिङ्गमिह ।। ३५ ।। सम्यक्त्व और विरति के परिणाम के नहीं होने पर भी उन्हें स्वीकार करने के बाद प्रयत्न करने से वे परिणाम होते हैं, क्योंकि परिणामों को रोकने वाले कर्म क्षयोपशम वाले होते हैं और विशिष्ट प्रयत्न से कर्मों का क्षयोपशम होता है। व्रत ग्रहण करते समय परिणाम हुए हों तो भी प्रयत्न नहीं किया जाये तो अशुभ कर्म के उदय से सम्यक्त्व और विरति के परिणाम नष्ट हो जाते हैं ।। ३५ ।। तम्हा णिच्चसतीए बहुमाणेणं च अहिगयगुणम्मि । पडिवक्खदुगुंछाए परिणइआलोयणेणं च ।। ३६ ।। तस्मात् नित्यस्मृत्या बहुमानेन च अधिगतगुणे । प्रतिपक्षजुगुप्सया परिणति-आलोचनेन च ।। ३६ ।। अतः स्वीकृत किये गये व्रतों का सदा स्मरण करना चाहिये, उनके प्रति आदर रखना चाहिये। व्रतों के प्रतिपक्षी मिथ्यात्व के प्रति जुगुप्साभाव रखना चाहिये और सम्यक्त्वादि गुणों तथा मिथ्यात्व आदि दोषों के परिणाम की समीक्षा करनी चाहिये ।। ३६ ।। तित्थंकरभत्तीए सुसाहुजणपज्जुवासणाए य । उत्तरगुणसद्धाए य एत्थ सया होइ जइयव्वं ॥ ३७ ।। तीर्थङ्करभक्त्या सुसाधुजनपर्युपासनया च । उत्तरगुणश्रद्धया च अत्र सदा भवति यतितव्यम् ।। ३७ ।। तीर्थङ्कर की भक्ति करनी चाहिये, सच्चे साधुओं की सेवा करनी चाहिये और जिन गुणों को स्वीकार किया हो उनका पालन करना चाहिये तथा उनसे उत्तरवर्ती गुणों पर श्रद्धा रखते हुए उनके पालन का प्रयत्न करना चाहिये ।। ३७ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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