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________________ पञ्चाशकप्रकरणम् [ प्रथम इच्छा से सचित्त पृथ्वी, पानी आदि पर रख देना सचित्तनिक्षेप अतिचार है। २. सचित्तपिधान - साधु को देने योग्य वस्तु को नहीं देने की इच्छा से सचित्त पत्तों या फलादि ढँक देना सचित्तपिधान अतिचार है। १४ ३. कालातिक्रम भिक्षा नहीं देने की इच्छा से भिक्षा का समय बीत जाने के बाद या पहले साधु को निमन्त्रण देना कालातिक्रम अतिचार कहलाता है। ४. परव्यपदेश - नहीं देने की इच्छा से अपनी होने पर भी यह वस्तु दूसरे की है ऐसा कहना परव्यपदेश अतिचार है। - ५. मात्सर्य साधु को कोई भी वस्तु क्रोध और ईर्ष्या के वशीभूत होकर भिक्षा में देना मात्सर्य अतिचार कहलाता है। एत्थं पुण अइयारा णो परिसुद्धेसु होति अक्खंडविरइभावा वज्जइ सव्वत्थ तो अत्र पुनोऽतिचाराः न परिशुद्धेषु भवन्ति अखण्डविरतिभावाद् वर्जयति सर्वत्र अतो भणितम् ।। ३३ ।। सर्वेषु । - देशविरति के अखण्ड परिणामों ( भावों) से परिशुद्ध श्रावक के सभी व्रतों में अतिचार नहीं होता है। इसलिये अतिचार के वर्णन में सभी जगह 'त्याग करता है' ऐसा कहा गया है। श्रावक जब व्रत स्वीकार करता है तब देशविरति के परिणाम के प्रतिबन्धक कर्मों का उदय नहीं होने से देशविरति का तात्त्विक परिणाम होता है, इसलिये जीव स्वेच्छा से ही अतिचारों में प्रवृत्ति नहीं करता है यही बताने के लिये 'अतिचारों का त्याग करता है' ऐसा कहा गया है ।। ३३ ।। सव्वेसु । भणियं ।। ३३ ।। सुत्तादुपायरक्खणगहणपयत्तविसया मुणेयव्वा । कुंभारचक्कभामगदंडाहरणेण सूत्रादुपाय- रक्षण- ग्रहण - प्रयत्नविषया कुम्भारचक्र-भ्रामक - दण्डोदाहरणेन - Jain Education International धीरेहिं ॥ ३४ ॥ ज्ञातव्याः । स्थिर चित्त वाले व्यक्तियों को कुम्हार के चक्के को चलाने वाले दण्ड के उदाहरण से आगमों के द्वारा व्रतों की प्राप्ति के उपाय, रक्षण, ग्रहण, प्रयत्न और विषय के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करनी चाहिये। धीरैः ।। ३४ ।। उपाय सम्यक्त्व आदि व्रतों की प्राप्ति के उपाय, रक्षण स्वीकृत सम्यक्त्व और अणुव्रतों का रक्षण, ग्रहण सम्यक्त्व और व्रतों को स्वीकार सम्यक्त्वादि को स्वीकार करने के बाद उनकी स्मृति रखने का करना, प्रयत्न For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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