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प्रथम]
श्रावकधर्मविधि पञ्चाशक
१२.
अतिचारों का त्याग करता है ।। ३० ।।
विशेष : १. अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तारक - अपनी आँखों से निरीक्षण किये बिना या अच्छी तरह निरीक्षण किये बिना बिस्तर लगाना, बिस्तर पर सोना इत्यादि अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित शय्यासंस्तारक अतिचार
२. अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित शय्यासंस्तारक - रजोहरण आदि से साफ नहीं किया हुआ या अच्छी तरह साफ नहीं किया हुआ बिस्तर लगाना, उस पर सोना इत्यादि अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित शय्यासंस्तारक अतिचार कहलाता है।
३. अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रश्रवणभूमि - दीर्घशंका और लघुशंका करने की भूमि को देखे बिना या अच्छी तरह देखे बिना मलमूत्र विसर्जन करना अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रश्रवणभूमि अतिचार है।
४. अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित उच्चारप्रश्रवणभूमि - साफ किये बिना या अच्छी तरह साफ किये बिना मलमूत्र की भूमि का उपयोग करना अप्रमार्जितदुष्प्रमार्जित उच्चारप्रश्रवणभूमि अतिचार कहलाता है।
५. सम्यक् अननुपालन -- आहार-पौषध, देहसत्कार-पौषध आदि का शास्त्रोक्त विधि के अनुसार पालन नहीं करना सम्यक् अननुपालन अतिचार है।
अण्णाईणं सुद्धाण कप्पणिज्जाण देसकालजुतं । दाणं जईणमुचियं गिहीण सिक्खावयं भणियं ।। ३१ ।। अन्नादीनां शुद्धानां कल्पनीयानां देशकालयुतम् । दानं यतीनामुचितं गृहिणां शिक्षाव्रतं भणितम् ।। ३१ ।।
साधुओं को न्याय से प्राप्त, निर्दोष, प्रसंगोचित अन्न, पानी, औषधि आदि का देश-काल के अनुसार उचित मात्रा में दान करना श्रावक का चौथा शिक्षाव्रत कहा गया है। इसे अतिथिसंविभागवत भी कहते हैं ।। ३१ ।।
सच्चित्तणिक्खिवणयं वज्जइ सच्चित्तपिहणयं चेव । कालाइक्कमपरववएसं मच्छरिययं चेव ।। ३२ ।। सचित्तनिक्षेपणकं वर्जयति सचित्तपिधानकमेव । कालातिक्रमपरव्यपदेशं
मत्सरिकतामेव ॥ ३२ ।। श्रावक अतिथिसंविभागवत में सचित्त-निक्षेप, सचित्त-पिधान, कालातिक्रम, परव्यपदेश और मात्सर्य – इन पाँच अतिचारों का त्याग करता है ॥ ३२ ॥
विशेष : १. सचित्तनिक्षेप - साधु को देने योग्य वस्तु को नहीं देने की
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