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प्रथम]
श्रावकधर्मविधि पञ्चाशक
वज्जणमणंतगुंबरिअच्चंगाणं च भोगओ माणं । कम्मयओ खरकम्माइयाण अवरं इमं भणियं ।। २१ ।। वर्जनमनन्तकोदुम्बर्यत्यङ्गानां च भोगतो मानम् । कर्मकत: खरकर्मादीनामपरमिदं भणितम् ।। २१ ।।
दूसरा गुणव्रत भोगोपभोग परिमाणव्रत है। यह परिमाण दो प्रकार का होता है -- भोजन सम्बन्धी और कर्म सम्बन्धी। एक बार उपयोग में आने वाली वस्तुओं का परिमाण करना भोग-परिमाण है और उद्योग-धन्धों का परिमाण करना कर्म रूप उपभोग-परिमाण है। अनन्तकाय, उदुम्बर ( उदुम्बर, वट, प्लक्ष, उम्बर और पीपल - ये उदुम्बर पंचक कहे जाते हैं ) और अत्यंग-अतिशायी भोजन जैसे – मद्य, मांस, मक्खन आदि का त्याग करना या शेष भोज्य पद हैं की मर्यादा करना भोजन सम्बन्धी उपभोग-परिभोग परिमाण है और हिंसक कार्य युक्त कोतवालपन आदि आजीविका के उपायों का त्याग कर्म सम्बन्धी उपभोगपरिभोग परिमाण व्रत है ।। २१ ।।
एक ही बार भोग करना उपभोग कहलाता है, जैसे - रोटी, फूलमाला इत्यादि। बार-बार भोग करना परिभोग कहलाता है, जैसे – वस्त्र आदि।
सच्चित्तं पडिबद्धं 'अपउलदुपउलतुच्छभक्खणयं। वज्जइ कम्मयओऽवि य इत्थं अंगालकम्माई ॥ २२ ॥ सच्चित्तं प्रतिबद्धं अपक्वदुष्पक्वतुच्छभक्षणकम् । वर्जयति कर्मकतोऽपि च इत्थं अङ्गारकर्माणि ।। २२ ।।
श्रावक दूसरे गुणव्रत में भोजन सम्बन्धी पाँच और कर्म सम्बन्धी पन्द्रह अतिचारों का त्याग करता है। सचित्त, सचित्त-सम्बद्ध, अपक्व, दुष्पक्व और तुच्छ - ये पाँच भोजन सम्बन्धी अतिचार हैं, जिनका त्याग श्रावक करता है। इसी प्रकार १. अंगार-कर्म, २. वन-कर्म, ३. शकट-कर्म, ४. भाटक-कर्म, ५. स्फोटक-कर्म,६. दन्तवाणिज्य, ७. लाक्षावाणिज्य, ८. रसवाणिज्य, ९. केशवाणिज्य, १०. विषवाणिज्य, ११. यन्त्रपीलन, १२. निर्लाञ्छनकर्म, १३. दावाग्नि-दापन (वन में आग लगाना), १४. जलशोषण और १५. असती-जनपोषण - इन पन्द्रह प्रकार के कर्मों को करना कर्म-सम्बन्धी अतिचार है। श्रावक इन कर्मों का भी त्याग करता है ।। २२ ।।
तहऽणत्थदंडविरई अण्णं स चउव्विहो अवज्झाणे ।।
पमयायरिए हिंसप्पयाण - पावोवएसे य ।। २३ ॥ १. ... ... ओलतुच्छ ... ...' इति पाठान्तरम्।
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