________________
पञ्चाशकप्रकरणम्
[प्रथम
तौलने अर्थात् नियत तौल से कम तौलने, तेल आदि को कम मापने अर्थात् नियत माप से कम मापने का त्याग करता है। वह नकली वस्तु का व्यापार भी नहीं करता है। ये पाँच स्थूल अदत्तादानविरमण व्रत सम्बन्धी अतिचार हैं ।। १४ ।।
परदारस्स य विरई ओरालवेउविभेयओ' दुविहं । एयमिह मुणेयव्वं सदारसंतोसमो एत्थ ।। १५ ।। परदाराणां च विरतिः ओरालविकुळभेदतो द्विविधम् । एतदिह ज्ञातव्यं स्वदारसन्तोषोऽत्र ।। १५ ।।
परस्त्री का त्याग करना और अपनी पत्नी से सन्तोष करना चौथा अणुव्रत है। इस सम्बन्ध में परस्त्री को दो प्रकार का जानना चाहिये। एक तो औदारिक शरीरधारी अर्थात् जिसका शरीर स्नायु, मांस, हड्डी से बना हो और दूसरी वैक्रियलब्धि से विकुर्वणा करके बनाए गए शरीर को धारण करने वाली। मनुष्य या पशु-स्त्री औदारिक-परस्त्री हैं तथा देवियाँ और विद्याधरियाँ वैक्रियपरस्त्री हैं ।। १५ ।।
वज्जइ इत्तरिअपरिग्गहियागमणं अणंगकीडं च । परवीवाहक्करणं कामे तिव्वाभिलासं च ।। १६ ।। वर्जयति इत्वर्यपरिगृहीतागमनमनङ्गक्रीडाश्च । . परविवाहकरणं कामे तीव्राभिलाषञ्च ।। १६ ।। : श्रावक चौथे अणुव्रत में निम्न पाँच अतिचारों का त्याग करता है - १. धन देकर किसी वेश्या आदि के उपभोग करने का त्याग।
२. धन नहीं लेने वाली अनाथ, विधवा, परित्यक्ता, कुमारिका आदि अपरिगृहीता स्त्री के साथ विषय-सेवन का त्याग।
३. मैथुन के लिये अपेक्षित अङ्ग स्त्रीयोनि और पुरुष-जननेन्द्रिय हैं। इनके अतिरिक्त स्तन, छाती, कपोल इत्यादि अनङ्ग हैं। अत: स्तन आदि अङ्गों से रतिक्रीड़ा करना अनङ्गक्रीड़ा है अथवा स्त्री द्वारा पुरुषजननेन्द्रिय से मैथुन करने के बाद भी असन्तोष के कारण चमड़ा, काष्ठ, फल, मिट्टी इत्यादि से बने पुरुष लिङ्ग जैसे कृत्रिम साधनों से यौनतृप्ति करना अथवा पुरुष द्वारा उक्त प्रकार के कृत्रिम साधनों से स्त्रीयोनि की रचना करके मैथुन-क्रिया करना अनङ्गक्रीड़ा है। श्रावक इसका त्याग करता है।
४. अपनी सन्तति के अतिरिक्त दूसरों की सन्तति का विवाह करवाना १. 'उरालवेउविभेयओ' इति पाठान्तरम्।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org