________________
पञ्चाशकप्रकरणम्
[प्रथम
गुरु के पास जिग्ने धर्म को सुना हो और जो मोक्षाभिलाषी हो, वह थोड़े समय के लिये या जीवन-पर्यन्त प्राणवध का त्याग करके व्रत को मलिन करने वाले आगे कहे हुए अतिचारों का भी सम्यक् प्रकार से त्याग करता है ।। ९ ॥
बंधवहं छविछेयं अइभारं भत्तपाणवोच्छेयं । कोहाइदूसियमणो गोमणुयाईण णो कुणइ ॥ १० ॥ बन्धवधं छविच्छेदमतिभारं भक्तपानव्यवच्छेदम् । क्रोधादिदूषितमनाः गोमनुजादीनां न करोति ।। १० ।।
स्थूल प्राणिवध का त्याग करने वाला श्रावक क्रोध ( लोभ, मोह ) . आदि के वशीभूत होकर किसी पशु, मनुष्य आदि को बाँधता नहीं है, उन्हें मारता नहीं है, उनके किसी अंग को काटता, छेदता आदि नहीं है, उन पर उनकी शक्ति से अधिक बोझ नहीं लादता है और उनको भोजन-पानी आदि से वंचित नहीं करता है ।। १० ॥
थूलमुसावायस्स य विरई सो पंचहा समासेणं । कण्णागोभोमालिय णासहरणकूडसक्खिज्जे ॥ ११ ॥ स्थूलमृषावादस्य च विरतिः सः पञ्चधा समासेन | कन्यागोभूम्यलीकं न्यासहरणकूटसाक्ष्ये ।। ११ ॥
स्थूल असत्य वचन से विरत होना दूसरा अणुव्रत है। वह स्थूल असत्य वचन कन्या, गाय, भूमि, न्यासहरण और कूटसाक्ष्य के भेद से संक्षेप में पाँच प्रकार का होता है।
१. कन्या-असत्य : खण्डित शीलवाली कन्या को अखण्डित शीलवाली और अखण्डित शीलवाली कन्या को खण्डित शीलवाली कहना आदि कन्या सम्बन्धी असत्य वचन है। इसके त्याग से दो पैरवाले सभी प्राणियों से सम्बन्धित असत्य-वचन का भी त्याग हो जाता है।
२. गौ-असत्य : अधिक दूध देने वाली गाय को कम दूध देने वाली तथा कम दूध देने वाली गाय को अधिक दूध देने वाली कहना आदि गौ असत्य है। इसके त्याग से चार पैर वाले जीवों से सम्बन्धित असत्य का भी त्याग हो जाता
३. भूमि-असत्य : अपनी जमीन को दूसरे की जमीन कहना और दसरे की जमीन को अपनी जमीन कहना आदि भूमि-असत्य है। भूमि-असत्य के त्याग से सभी द्रव्यों से सम्बन्धित असत्य-वचन का भी त्याग हो जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org