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________________ प्रथम] श्रावकधर्मविधि पञ्चाशक ३ करने के लिये नौका के समान अणुव्रत आदि के ग्रहण के भाव अवश्य होते हैं ।। ६ ।। पंच उ अणुव्वयाइं थूलगपाणवहविरमणाईणि ।। उत्तरगुणा तु अण्णे दिसिव्वयाई इमेसिं तु ।। ७ ।। पञ्च तु अणुव्रतानि स्थूलक-प्राणवध-विरमणादीनि । उत्तर-गुणास्तु अन्ये दिग्व्रतादयः एषां तु ।। ७ ।। स्थूलप्राणवधविरमण आदि पाँच अणुव्रत होते हैं और इन अणुव्रतों के दूसरे दिग्विरति आदि सात उत्तरगुण हैं ।। ७ ।। __अणु का अर्थ सीमित होता है। साधुओं के महाव्रतों की अपेक्षा श्रावक के व्रत सीमित या आंशिक होते हैं, इसलिये उन्हें अणुव्रत कहते हैं। स्थूल प्राणवधविरमण से तात्पर्य है - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवों की हिंसा से बचना। ये जीव स्थूल कहे जाते हैं, क्योंकि मिथ्यादृष्टि भी इन्हें जीव मानता है, जबकि एकेन्द्रिय जीव सूक्ष्म होते हैं, केवल सम्यग्दृष्टि ही उन्हें जीव रूप में मानता है। थूलगपाणवहस्सा विरई दुविहो य सो वहो होई । संकप्पारंभेहिं वज्जइ संकप्पओ विहिणा ।। ८ ।। स्थूलकप्राणवधस्य विरतिः द्विविधश्च स वधो भवति । सङ्कल्पारम्भैः वर्जयति सङ्कल्पतो विधिना ।। ८ ।। विधिपूर्वक स्थूल प्राणियों के वध से विरमण अर्थात् स्थूलप्राणातिपातविरमण – यह प्रथम अणुव्रत है। प्राणियों की हिंसा संकल्पपूर्वक और आरम्भ - इन दो प्रकारों से होती है। स्थूलप्राणातिपात रूप अणुव्रत को स्वीकार करने वाला श्रावक संकल्पपूर्वक प्राणवध का त्याग करता है ।। ८ ।। संकल्प अर्थात् मारने का विचार। आरम्भ अर्थात् वह क्रिया जिसमें सहज ही जीव हिंसा हो, जैसे - खेती करना, रसोई बनाना आदि। इन दो प्रकार के वधों में से श्रावक संकल्पपूर्वक की जाने वाली हिंसा का त्याग करता है, लेकिन वह आरम्भिक हिंसा से नहीं बच सकता है, क्योंकि वह गृहस्थावस्था में खेती करना, रसोई बनाना आदि क्रियाओं का त्याग नहीं कर सकता है। गुरुमूले सुयधम्मो संविग्गो इत्तरं व इयरं वा । वज्जित्तु तओ सम्मं वज्जेइ इमे य अइयारे ॥ ९ ॥ गुरुमूले श्रुतधर्मः संविग्नः इत्वरं वा इतरं वा । वर्जयित्वा ततः सम्यक् वर्जयति इमान् च अतिचारान् ।। ९ ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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