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भूमिका
में विचार एवं वर्तन की जो अभिनव दशा उद्घाटित की वह विशेषकर आज के युग के असाम्प्रदायिक एवं तुलनात्मक ऐतिहासिक अध्ययन के क्षेत्र में अधिक व्यवहार्य है।
प्रस्तुत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद डॉ० दीनानाथ शर्मा ने किया है। सम्पादन कार्य में डॉ० कमलेश कुमार जैन, भूमिका-लेखन में डॉ० सुधा जैन एवं ग्रन्थ की प्रकाशन व्यवस्था में डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय का अपेक्षित सहयोग मिला है, एतदर्थ हम इन सभी सहयोगियों के प्रति आभार प्रकट करते हैं। पुस्तक सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये ग्रन्थालयी ओमप्रकाश सिंह निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं।
गुरुपूर्णिमा २० जुलाई १९९७
सागरमल जैन
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