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________________ भूमिका चान्द्रायण तप अनुक्रम और विपरीत क्रम से भिक्षा की दत्तियों, उपवासों या कवलों की संख्या में वृद्धि और कमी करने से चान्द्रायण तप होता है । VIE रोहिणी आदि विविध तप रोहिणी, अम्बा, मन्दपुण्यिका आदि नौ देवताओं को उद्दिष्ट करके किये जाने वाले तप रोहिणी आदि तप कहलाते हैं । सर्वाङ्गसुन्दर तप शुक्ल पक्ष में एक-एक दिन के अन्तर से आठ उपवास और पारणे के दिन आयम्बिल करना सर्वाङ्गसुन्दर तप है। निरुजशिख तप कृष्णपक्ष में सर्वाङ्गसुन्दर तप की भाँति ही तप करना निरुशिख तप कहलाता है । इसमें रोगी की सेवा करने का नियम लेना होता है 1 - परमभूषण तप एक-एक दिन के अन्तर से बत्तीस आयम्बिल करना, जिनप्रतिमा को तिलक लगाना, आभूषण चढ़ाना आदि परमभूषण तप है। - आपत्तिजनक तप एक-एक दिन के अन्तर से बत्तीस आयम्बिल करना आपत्तिजनक तप है। विशेषरूप से धर्मकार्यों में बल और वीर्य नहीं छिपाने पर ही यह तप होता है । Jain Education International सौभाग्यकल्पवृक्ष तप से उपवास करना और पारणे में सौभाग्यकल्पवृक्ष तप है । दर्शन - ज्ञान - चारित्र तप तप विशेष होता है । इसमें प्रथम चारित्रगुण की शुद्धि के लिये है । ciii चैत्र महीने में एक-एक दिन के अन्तर मुनियों को दान देकर सरस भोजन करना ― - इनके लिए तीन अष्टम (तीन तेलों) से दर्शनगुण, दूसरा ज्ञानगुण और तीसरा इन तपों में जीव श्रद्धापूर्वक क्रिया करता है, इसलिए निदान अर्थात् आकांक्षारहित होता है। श्रद्धा से शुभ अध्यवसाय होता है और शुभ अध्यवसाय से बोधिबीज की प्राप्ति होती है, जो कि संसार से मुक्ति का कारण बनती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य हरिभद्र बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी एक विशिष्ट प्रतिभासम्पन्न आचार्य रहे हैं। उनके द्वारा की गई साहित्य सेवा न केवल जैन साहित्य अपितु सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय में अपना विशिष्ट स्थान रखती है । हरिभद्र ने जो उदात्त दृष्टि, असाम्प्रदायिक वृत्ति और निर्भयता अपनी कृतियों में प्रदर्शित की है, वैसी उनके पूर्ववर्ती अथवा उत्तरवर्ती किसी भी जैन - जैनेतर विद्वान् ने शायद ही प्रदर्शित की हो। उन्होंने अन्य दर्शनों के विवेचन की एक स्वस्थ परम्परा स्थापित की तथा दार्शनिक और योग- परम्परा I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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